शुक्रवार, 25 मार्च 2011

प्रलेस के महासचिव प्रो. कमला प्रसाद को जन संस्कृति मंच की श्रद्धांजलि



आज सुबह ही हम सब प्रो. कमला प्रसाद के असामयिक निधन का समाचार सुन अवसन्न रह गए. रक्त कैंसर यों तो भयानक मर्ज़ है, लेकिन फिर भी आज की तारीख में वह लाइलाज नहीं रह गया है. ऐसे में यह उम्मीद तो बिलकुल ही नहीं थी कि कमला जी को इतनी जल्दी खो देंगे. उन्हें चाहने वाले, मित्र, परिजन और सबसे बढ़कर प्रगतिशील, जनवादी सांस्कृतिक आन्दोलन की यह भारी क्षति है. इतने लम्बे समय तक उस प्रगतिशील आंदोलन का बतौर महासचिव नेतृत्व करना जिसकी नींव सज्जाद ज़हीर, प्रेमचंद, मुल्कराज आनंद , फैज़ सरीखे अदीबों ने डाली थी, अपन आप में उनकी प्रतिबद्धता और संगठन क्षमता के बारे में बहुत कुछ बयान करता है.
१४ फरवरी,१९३८ को सतना में जन्में कमला प्रसाद ने ७० के दशक में ज्ञानरंजन के साथ मिलकर 'पहल' का सम्पादन किया, फिर ९० के दशक से वे 'प्रगतिशील वसुधा' के मृत्युपर्यंत सम्पादक रहे. दोनों ही पत्रिकाओं के कई अनमोल अंकों का श्रेय उन्हें जाता है. कमला प्रसाद जी ने पिछली सदी के उस अंतिम दशक में भी प्रलेस का सजग नेतृत्व किया जब सोवियत विघटन हो चुका था और समाजवाद को पूरी दुनिया में अप्रासंगिक करार देने की मुहिम चली हुई थी. उन दिनों दुनिया भर में कई तपे तपाए अदीब भी मार्क्सवाद का खेमा छोड़ अपनी राह ले रहे थे. ऐसे कठिन समय में प्रगतिशील आन्दोलन की मशाल थामें रहनेवाले कमला प्रसाद को आज अपने बीच न पाकर एक शून्य महसूस हो रहा है. कमला जी की अपनी मुख्य कार्यस्थली मध्य प्रदेश थी. मध्य प्रदेष कभी भी वाम आन्दोलन का मुख्य केंद्र नहीं रहा. ऐसी जगह नीचे से एक प्रगतिशील सांस्कृतिक संगठन को खडा करना कोइ मामूली बात न थी. ये कमला जी की सलाहियत थी कि ये काम भी अंजाम पा सका. निस्संदेह हरिशंकर परसाई जैसे अग्रजों का प्रोत्साहन और मुक्तिबोध जैसों की विरासत ने उनका रास्ता प्रशस्त किया, लेकिन यह आसान फिर भी न रहा होगा.
कमला जी को सबसे काम लेना आता था, अनावश्यक आरोपों का जवाब देते उन्हें शायद ही कभी देखा गया हो. जन संस्कृति मंच के पिछले दो सम्मेलनों में उनके विस्तृत सन्देश पढ़े गए और दोनों बार प्रलेस के प्रतिनिधियों को हमारे आग्रह पर सम्मेलन संबोधित करने के लिए उन्होनें भेजा. वे प्रगतिशील लेखक संघ , जनवादी लेखक संघ और जन संस्कृति मंच के बीच साझा कार्रवाइयों की संभावना तलाशने के प्रति सदैव खुलापन प्रदर्शित करते रहे और अनेक बार इस सिलसिले में हमारी उनसे बातें हुईं. इस वर्ष कई कार्यक्रमों के बारे में मोटी रूपरेखा पर भी उनसे विचार विमर्ष हुआ था जो उनके अचानक बीमार पड़ने से बाधित हुआ. संगठनकर्ता के सम्मुख उन्होंने अपनी आलोचकीय और वैदुषिक क्षमता, अकादमिक प्रशासन में अपनी दक्षता को उतनी तरजीह नहीं दी. लेकिन इन रूपों में भी उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. मध्यप्रदेश कला परिषद् और केन्द्रीय हिंदी संस्थान जैसे शासकीय निकायों में काम करते हुए भी वे लगातार प्रलेस के अपने सांगठनिक दायित्व को ही प्राथमिकता में रखते रहे. उनका स्नेहिल स्वभाव, सहज व्यवहार सभी को आकर्षित करता था. उनका जाना सिर्फा प्रलेस , उनके परिजनों और मित्रों के लिए ही नहीं , बल्कि समूचे वाम- लोकतांत्रिक सांस्कृतिक आन्दोलन के लिए भारी झटका है. जन संस्कृति मंच .प्रो. कमला प्रसाद को अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता है . हम चाहेंगे कि वाम आन्दोलन की सर्वोत्तम परम्पराओं को विकसित करनेवाले संस्कृतिकर्मी इस शोक को शक्ति में बदलेंगे और उन तमाम कामों को मंजिल तक पहुचाएँगे जिनके लिए कमला जी ने जीवन पर्यंत कर्मठतापूर्वक अपने दायित्व का निर्वाह किया.

- प्रणय कृष्ण , महासचिव , जन संस्कृति मंच


जाने मने आलोचक डॉ. कमला प्रसाद का जाना

जनवादी और प्रगतिशील आन्दोलन का नुकसान है

---- जन संस्कृति मंच

लखनऊ , २५ मार्च . जन संस्कृति मंच ने हिन्दी के जाने माने आलोचक , प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव और "वसुधा" के संपादक डा० कमला प्रसाद के निधन पर गहरा शोक प्रकट किया है. आज जारी बयान में जसम लखनऊ के संयोजक कौशल किशोर ने कहा कि कमला प्रसाद जी का जाना जनवादी और प्रगतिशील आन्दोलन का भारी नुकसान है. अपनी वैचारिक प्रतिबधता और साहित्य ओ समाज में अपने योगदान के लिए हमेशा याद किये जायेंगे . अयोध्या के सम्बन्ध में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ साझा सांस्कृतिक पहल उन्होंने ली थी तथा संयुक्त सांस्कृतिक आंदोलनों में उनकी विशिष्ट भूमिका थी.

हिन्दी के वरिष्ठ साहित्यकार और आलोचक कमला प्रसाद का आज शुक्रवार 25 मई की सुबह नई दिल्ली के एक अस्पताल में निधन हो गया । कैंसर से पीड़ित प्रसाद का लम्बे समय से इलाज चल रहा था. वह मध्यप्रदेश से प्रकाशित साहित्यिक पत्रिका वसुधा के सम्पादक और प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव थे । मध्य प्रदेश के सतना जिले के गांव धौरहरा में 1938 में जन्मे प्रसाद की प्रमुख कृतियां साहित्य शास्त्र, आधुनिक हिन्दी कविता और आलोचना की द्वन्द्वात्मकता, रचना की कर्मशाला, नवजागरण के अग्रदूत भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हैं । हिन्दी की महत्वपूर्ण पत्रिका "पहल" के संपादन में भी वे लम्बे समय तक ज्ञानरंजन के साथ रहे .

कौशल किशोर
संयोजक
जन संस्कृति मंच लखनऊ


1 टिप्पणी:

Dinesh pareek ने कहा…

आपका ब्लॉग देखा | बहुत ही सुन्दर तरीके से अपने अपने विचारो को रखा है बहुत अच्छा लगा इश्वर से प्राथना है की बस आप इसी तरह अपने इस लेखन के मार्ग पे और जयादा उन्ती करे आपको और जयादा सफलता मिले
अगर आपको फुर्सत मिले तो अप्प मेरे ब्लॉग पे पधारने का कष्ट करे मैं अपने निचे लिंक दे रहा हु
बहुत बहुत धन्यवाद
दिनेश पारीक
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