सोमवार, 27 दिसंबर 2010

संगोष्ठी रपट : एस0 के0 पंजम की कृतियाँ:

अतीत व वर्तमान के संघर्ष का दस्तावेज

कौशल किशोर

जाने-माने युवा लेखक एस0 के0 पंजम के उपन्यास ‘गदर जारी रहेगा’ तथा इतिहास की पुस्तक ‘शूद्रों का प्राचीनतम इतिहास’ का विमोचन 26 दिसम्बर 2010 (रविवार) को लखनऊ में अमीनाबाद इण्टर कॉलेज, अमीनाबाद के सभागार में हुआ। कार्यक्रम का आयोजन जन संस्कृति मंच (जसम) ने किया था जिसकी अध्यक्षता करते हुए हिन्दी के वरिष्ठ कवि ब्रहमनारायण गौड़ ने कहा कि पंजम की ये दोनों पुस्तकें अतीत व वर्तमान के संघर्ष का दस्तावेज हैं। ‘गदर जारी रहेगा’ के माध्यम से सरकार की जन विरोधी नीतियों को चुनौती देने का जो साहस किया गया है, वह प्रशंसनीय है। अपनी पुस्तक ‘शूद्रों का प्रचीनतम इतिहास’ के द्वारा पंजम ने अतीत के छुपाये गये तथ्यों पर से घूल झाड़ कर सच्चाई को सामने लाने का काम किया है। कार्यक्रम का संचालन जसम के संयोजक व कवि कौशल किशोर ने किया ।

गौरतलब है कि एस0 के0 पंजम की दोनों पुस्तकें दिव्यांश प्रकाशन (एम0आई0जी0 222, टिकैतराय कॉलोनी, लखनऊ) से अभी हाल में प्रकाशित हुई हैं। ‘शूद्रों का प्राचीनतम इतिहास’ (मूल्य- सजिल्दः 495.00, पेपर बैकः 250.00) इतिहास की पुस्तक है जिसमें वैज्ञानिक व तर्कसंगत तरीके से इस सवाल का जवाब खोजा गया है कि शूद्र वर्ग कौन है, इसकी उत्पति कैसे हुई ? इसी क्रम में सृष्टि, पृथ्वी व जीव की उत्पति से होते हुए भारत में नस्लों की उत्पति तथा शूद्र वर्ण एवं जाति नहीं, बल्कि नस्ल हैं, इसका विशद अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। वैदिक काल में शिक्षा, सभ्यता और संस्कृति की क्या स्थिति रही है, बौद्ध काल में शिक्षा, आर्थिक व सामाजिक व्यवस्था कैसी रही है, भारतीय समाज में दास प्रथा और वर्ण व्यवस्था व उसकी संस्कृति व संस्कार किस रूप में रहे हैं आदि का वृहत वर्णन है। ‘शूद्रस्तान’ की चर्चा करते हुए पुस्तक में फुले, साहूजी, पेरियार, अम्बेडकर, जगजीवन राम के विचारों को सामने लाया गया है।

वहीं ‘गदर जारी रहेगा’ (मूल्य- सजिल्दः 250.00, पेपर बैकः 150.00) उपन्यास है। सŸाा का दमन, उसके द्वारा जनता का शोषण, जल, जंगल, जमीन से गरीब जनता का विस्थापन व बेदखली और जन प्रतिरोध, इस विषय पर यह उपन्यास केन्द्रित है। आज भी भारत में अंग्रेज सरकार द्वारा बनाये गये नब्बे प्रतिशत काले कानून लागू हैं। उन्हीं में एक है भूमि अधिग्रहण कानून 1894 । विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) का जन्म इसी से होता है। देश में इस समय 512 सेज हैं। यह सेज क्या है ? किसके हितों के लिए है ? आज के नये सामंत कौन हैं ? इनसे उपन्यास परिचित कराता है। देशी-विदेशी पूँजीपतियों के पक्ष में खड़ी सŸाा की एक तरफ बन्दूकें हैं तो दूसरी तरफ अपनी सम्पदा और अधिकारों के लिए संघर्ष करती, अपना रक्त बहाती जनता है। इसी संघर्ष की उपज नन्दीग्राम, सिंगूर व कलिंग नगर आदि हैं। ‘गदर जारी रहेगा’ सेज के नाम पर उजाड़ी गई जनता के प्रतिरोध संघर्ष की कहानी है।

हिन्दी-उर्दू के जाने-माने लेखक शकील सिद्दीकी और सामाजिक कार्यकर्ता अरुण खोटे ने पुस्तकों का विमोचन किया। इस अवसर पर बोलते हुए शकील सिद्दीकी ंने कहा कि एस0 के0 पंजम की इतिहास की पुस्तक हमें अतीत को समझने में मदद करती है। हमारा अतीत उथल-पुथल से भरा है और उसके अवशेष आज भी मौजूद हैं। ब्राहमणवाद, पुरातनपंथ से संघर्ष के बिना हम अपने समाज को प्रगतिशील व आधुनिक नहीं बना सकते हैं। हालत यह है कि अम्बेडकर को मानने वाले भी कर्मकांड का अनुसरण कर रहे हैं। जरूरत उनके रेडिकल विचारों को सामने लाने की है। आज समाज में मानव विरोधी शक्तियाँ ज्यादा आक्रामक हुई हैं। इस हालत में साहित्य मात्र समाज का दर्पण बनकर नहीं रह सकता है। उसे समाज परिवर्तन का हथियार बनना पड़ेगा। यह अच्छी बात है कि पंजम इसी प्रतिबद्धता के साथ साहित्य में सक्रिय हैं।

अपने संयोजकीय वक्तव्य में कौशल किशोर ने दोनों पुस्तकों का परिचय देते हुए कहा कि एस0 के0 पंजम का उपन्यास ‘गदर जारी रहेगा’ विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) के यथार्थ को सामने लाता है। वहीं ‘शूद्रों का प्राचीनतम इतिहास’ प्राचीन भारतीय समाज के सामाजिक द्वन्द्व को समग्रता में देखने व समझने का प्रयास है। ये दोनों पुस्तकें एस0 के0 पंजम की लेखन-यात्रा में मील का पत्थर हैं।

‘गदर जारी रहेगा’ पर अपना आधार वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए कवि व लेखक श्याम अंकुरम ने कहा कि पंजम का लेखन बेतरतीब आक्रोश, चिढ़ भरे गुस्से का विवरण होता रहा है जो ‘गदर जारी रहेगा’ में विस्तार पाकर संगठित संघर्ष के रूप में नियोजित विद्रोह बन जाता है। बेतरतीब आक्रोश से संगठित विद्रोह तक की इनकी यह यात्रा अपने स्वअर्जित अनुभव व विवेक द्वारा तय की गई है, ‘भूख व्यक्ति को श्रम सिखाती है, भूख व्यक्ति को हिंसा सिखाती है, भूख व्यक्ति को संघर्ष में झोकती है और संघर्ष से शहादत मिलती है’। शहादत की यह अनिवार्यता इनके उपन्यास में जगह-जगह है जो खेतिहर मजदूर, दलित, आदिवासियों के वर्ग संश्रय निर्माण के जरिये इस नजरिये को उदघाटित करती है, ‘आज लड़ाई धर्म व जाति की नहीं है और है भी तो यह बहुत छोटी-संकुचित है। असल लड़ाई तो समाजवाद की है।’

लेखक व पत्रकार अनिल सिन्हा ने कहा कि यह आज के राजनीतिक संघर्ष का उपन्यास है। ंिसंगूर, नन्दीग्राम, कलिंगनगर में जो दमन-उत्पीड़न हुआ, यही इसकी विषय वस्तु है। यहाँ एक तरफ देशी-विदेशी पूँजीपतियों के पक्ष में खड़ी सŸाा की बन्दूकें हैं तो दूसरी तरफ अपनी सम्पदा और अधिकारों के लिए संघर्ष करती जनता है। इस अवसर पर ‘निष्कर्ष’ के संपादक डॉ0 गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि पंजम का उपन्यास आज के समय से मुठभेड़ करता है और जरूरी विषय उठाता है लेकिन उपन्यास का कलापक्ष कमजोर है जिस पर पंजम को ध्यान देने की जरूरत है। उपन्यास पर पत्रकारिता हावी है। साहित्य विचार व राजनीति विहिन नहीं हो सकता लेकिन यह जितना ही छिपे रूप में आये, उसका असर ज्यादा गहरा होता है।

‘घी के लड्डू टेढ़ो भले’ कहावत का उद्धरण देते हुए कवि व आलोचक चन्द्रेश्वर ने कहा कि इस भयानक दौर में कला और शिल्प से ज्यादा जरूरी है कि आपका लेखन लूट और दमन के विरूद्ध है या नहीं। वैसे ‘गदर’ शब्द हिन्दी में 1857 के संदर्भ में आया जिसका प्रयोग नकारात्क अर्थों में किया गया लेकिन पंजम के उपन्यास में इसका अर्थ संघर्ष व प्रतिरोध है। इस दौर में जब कथा व उपन्यास लेखन बहुत मनोगत हुआ है, ऐसे में उपन्यास के माध्यम से ‘सेज’ के यथार्थ और जन प्रतिरोध की अभिव्यक्ति इस उपन्यास को प्रासंगिक बनाता है।

इस अवसर पर ‘अलग दुनिया’ के के0 के0 वत्स, अनन्त लाल, अंग्रेजी के प्रवक्ता राम सिंह प्रेमी, डॉ मलखन सिंह आदि ने भी अपने विचार प्रकट किये। कार्यक्रम में लेखकों, बुद्धिजीवियों और राजनीतिक व समाजिक कार्यकर्ताओं की अच्छी-खासी उपस्थिति थी जिनमें नाटककार राजेश कुमार कवि भगवान स्वरूप कटियार व वीरेन्द्र सारंग, ‘कर्म श्री’ की सम्पादिका पूनम सिंह, कथाकार नसीम साकेती, कलाकार मंजु प्रसाद, लेनिन पुस्तक केन्द्र के गंगा प्रसाद, लक्षमीनारायण एडवोकेट, एपवा की विमला किशोर, इंकलाबी नौजवान सभा के प्रादेशिक महामंत्री बालमुकुन्द धूरिया, भाकपा (माले) के शिवकुमार आदि प्रमुख थे।

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