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शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

जनविरोधी अर्थनीति और भ्रष्ट राजनीति के खिलाफ आंदोलन जारी रहेगा : जन संस्कृति मंच

जन संस्कृति मंच


जन लोकपाल विधेयक बनने से भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को बल मिलेगा: प्रो. मैनेजर पांडेय

दिल्ली, उत्तर प्रदेश और पटना में आज जसम से जुड़े लेखक-संस्कृतिकर्मी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में शामिल हुए


प्रकाशनार्थ/ प्रसारणार्थ
नई दिल्ली: 8 अप्रैल
जन लोकपाल विधेयक लागू करने के सवाल पर आज जन संस्कृति मंच के अध्यक्ष प्रो. मैनेजर पांडेय के नेतृत्व में लेखकों, कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों, पत्रकारों और बुद्धिजीवियों का समूह जंतर-मंतर पहंुचा और पिछले तीन दिन से जारी श्री अन्ना हजारे के आंदोलन के प्रति अपना समर्थन जताया। जन संस्कृति मंच से जुड़े कलाकारों ने इसी तरह उत्तर प्रदेश के लखनऊ और गोरखपुर समेत कई दूसरे शहरों और बिहार की राजधानी पटना में इस भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में आज शामिल हुए। जंतर मंतर पर इस आंदोलन में शिरकत करने वालों में जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. मैनेजर पांडेय, राष्ट्रीय महासचिव प्रणय कृष्ण, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कवि मंगलेश डबराल, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कवयित्री शोभा सिंह, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष कवि मदन कश्यप, कवि-पत्रकार अजय सिंह, कहानीकार अल्पना मिश्र, कवि रंजीत वर्मा, द गु्रप संस्था के संयोजक फिल्मकार संजय जोशी, संगवारी नाट्य संस्था के संयोजक कपिल शर्मा, युवा चित्रकार अनुपम राय, रंगकर्मी सुनील सरीन, संस्कृतिकर्मी सुधीर सुमन, श्याम सुशील, मीडिया प्रोफेशनल रोहित कौशिक, संतोष प्रसाद और रामनिवास आदि प्रमुख थे। लेखक-संस्कृतिकर्मियों ने जंतर मंतर पर उपस्थित जनसमूह के बीच पर्चे भी बांटे।
इस मौके पर जसम अध्यक्ष प्रो. मैनेजर पांडेय ने कहा कि इस देश में जिस पैमाने पर बड़े-बड़े घोटाले सामने आए हैं और भ्रष्टाचार जिस कदर बढ़ा है, उससे आम जनता के भीतर भारी क्षोभ है। यह गुस्सा इसलिए भी है कि कांग्रेस-भाजपा समेत शासकवर्ग की जितनी भी राजनीतिक पार्टियां हैं, वे इस भ्रष्टाचार को संरक्षण और बढ़ावा दे रही हैं। अगर यूपीए सरकार श्री अन्ना हजारे की मांगों को मान भी लेती है, तो भी भ्रष्टाचार के खिलाफ छिड़ी इस मुहिम को और भी आगे ले जाने की जरूरत बनी रहेगी।
उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर में होने वाले घोटाले पहले के घोटालों की तुलना में बहुत बड़े हैं, क्योंकि निजीकरण की नीतियों ने कारपोरेट घरानों के लिए संसाधनों की बेतहाशा लूट का दरवाजा खोल दिया है. देश के बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों- जमीन, खनिज, पानी- ही नहीं लोगों की जीविका के साधनों की भी लूट का सिलसिला बेरोक-टोक जारी है। राडिया टेपों और विकीलीक्स के खुलासों ने साफ कर दिया है कि साम्राज्यवादी ताकतें कारपोरेट हितों और नीतियों के अनुरूप काम करने वाले मंत्रियों की सीधे नियुक्ति करवाती हैं। सभी तरह के सवालों से परे रखी गयी सेना के उच्चाधिकारी न सिर्फ जमीन घोटालों में लिप्त पाये गये हैं, बल्कि रक्षा सौदों में भी बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होने का नियमित खुलासा हो रहा है। न्यायपालिका के शीर्ष पर विराजमान न्यायधीशों के भ्रष्टाचार में लिप्त होने की खबरें प्रामाणिक तौर पर उजागर हो चुकी हैं। कांग्रेस के कई नेता भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद अपने पदों पर जमे हुए हैं। केंद्र ही नहीं राज्य सरकारों में भी भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। कर्नाटक में भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री भूमि घोटाले में संलिप्त हैं और पूरे प्रदेश की अर्थव्यवस्था के बड़े हिस्से जितनी अपनी अवैध अर्थव्यवस्था चलाने वाले रेड्डी बंधु सरकार के सम्मानित और प्रभावशाली मंत्री हैं। इन स्थितियों में कारपोरेट लूट और भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करने वाले कार्यकर्ताओं को लाठी-गोली का सामना करना पड़ रहा है, उन्हें देशद्रोही बताकर जेलों में बंद किया जा रहा है, जबकि भ्रष्टाचारी खुलेआम घूम रहे हैं।
प्रो. मैनेजर पांडेय ने कहा कि ऐसे कठिन हालात में प्रभावी लोकपाल कानून बनाने के लिए शुरू हुई भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को और भी ऊंचाई पर ले जाने की जरूरत है, ताकि जनता की भावनाओं के अनुरूप भ्रष्टाचार से मुक्त देश बनाया जा सके।
जन संस्कृति मंच की मांग है कि 1. सरकार द्वारा तैयार किये गये नख-दंत विहीन लोकपाल कानून के मसविदे को रद्द किया जाये और भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्षरत कार्यकर्ताओं की भागीदारी से एक प्रभावशाली लोकपाल कानून बनाया जाये।
2. टाटा, रिलायंस, वेदांत और दाउ जैसे भ्रष्टाचार और कानून के उल्लंघन में संलिप्त कारपोरेट घरानों को काली सूची में डाला जाये।
3. स्विटजरलैंड के बैंकों में अपनी काली कमायी जमा किये लोगों के नाम सार्वजनिक किये जायें, काले धन की एक-एक पाई को देश में वापस लाया जाये और इसका इस्तेमाल समाज कल्याण के कामों में किया जाये। हम यह भी मांग करते हैं कि तमाम अंतरराश्ट्रीय कानूनों की आड़ में काले धन को विदेश ले जाने के सभी दरवाजे निर्णायक तौर पर बंद किये जायें।
4. आदर्श घोटाले व अन्य रक्षा घोटालों में लिप्त सैन्य अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाया जाये और उन्हें कड़ी सजा दी जाये.
5. कारपोरेट लूट और भ्रष्टाचार के लिए उर्वर जमीन मुहैया कराने वाली निजीकरण और व्यावसायीकरण की नीतियों को उलट दिया जाये।
6. कारपोरेट घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए उनके दबाव में लिये गये सभी सरकारी निर्णयों की समीक्षा की जाये और उन्हें उलट दिया जाये।
जन संस्कृति मंच
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की ओर से
सुधीर सुमन द्वारा जारी

सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

गोरख पांडेय स्मृति संकल्प


जसम, उ.प्र. का पांचवा राज्य सम्मेलन

गोरख स्मृति संकल्प और जसम, उत्तर प्रदेश का पांचवा राज्य सम्मेलन 29-30 जनवरी 2011 को कवि गोरख पांडेय के गांव में संपन्न हुआ। गोरख के गुजरने के 21 साल बाद जब पिछले बरस लोग देवरिया जनपद के इस
‘पंडित का मुंडेरा’ गांव में जुटे थे, तब करीब 65 लोगों ने गोरख से जुड़ी अपनी यादों को साझा किया था। इस बार भी वे उत्प्रेरक यादें थीं। उनके सहपाठी अमरनाथ द्विवेदी ने संस्कृत विश्वविद्यालय में छात्रसंघ के अध्यक्ष और बीचयू में एक आंदोलनकारी छात्र के बतौर उनकी भूमिका को याद किया। उन्होंने बताया कि गोरख अंग्रेजी के वर्चस्व के विरोधी थे, लेकिन हिंदी के कट्टरतावाद और शुद्धतावाद के पक्षधर नहीं थे। बीचयू में संघी कुलपति के खिलाफ उन्होंने छात्रों के आंदोलन का नेतृत्व किया, जिसके कारण उन्हें विश्वविद्यालय प्रशासन की यातना भी झेलनी पड़ी। साम्राज्यवादी-सामंती शोषण के खिलाफ संघर्ष के लिए उन्होंने नक्सलवादी आंदोलन का रास्ता चुना और उसके पक्ष में लिखा। जहां भी जिस परिवार के संपर्क में वे रहे उसे उस आंदोलन से जोड़ने की कोशिश की। भर्राई हुई आवाज में राजेेंद्र मिश्र ने उनकी अंतिम यात्रा में उमड़े छात्र-नौजवानों, रचनाकारों और बुद्धिजीवियों के जनसैलाब को फख्र से याद करते हुए कहा कि मजदूरों और गरीबों की तकलीफ से वे बहुत दुखी रहते थे। फसल कटाई के समय वे हमेशा उनसे कहते कि पहले वे अपनी जरूरत भर हिस्सा घर ले जाएं, उसके बाद ही खेत के मालिक को दें। पारसनाथ जी के अनुसार वे कहते थे कि अन्याय और शोषण के राज का तख्ता बदल देना है और सचमुच उनमें तख्ता बदल देने की ताकत थी। गोरख की बहन बादामी देवी ने बड़े प्यार से उन्हें याद किया। उन्हें सुनते हुए ऐसा लगा जैसे गोरख की बुआ भी वैसी ही रही होंगी, जिन पर उन्होंने अपनी एक मशहूर कविता लिखीथी।

जसम महासचिव प्रणय कृष्ण ने कहा कि जिस संगठन को गोरख ने बनाया था उसकी तरफ से उनकी कविता और विचार की दुनिया को याद करते हुए खुद को नई उर्जा से लैस करने हमलोग उनके गांव आए हैं। गोरख ने मेहनतकश जनता के संघर्ष और उनकी संस्कृति को उन्हीं की बोली और धुनों में पिरोकर वापस उन तक पहुंचाया था। उन्होंने सत्ता की संस्कृति के प्रतिपक्ष में जनसंस्कृति को खड़ा किया था, आज उसे ताकतवर बनाना ही सांस्कृतिक आंदोलन का प्रमुख कार्यभार है। इसके बाद ‘जनभाषा और जनसंस्कृति की चुनौतियां’ विषय पर जो संगोष्ठी हुई वह भी इसी फिक्र से बावस्ता थी।

आलोचक गोपाल प्रधान दो टूक तरीके से कहा कि हर चीज की तरह संस्कृति का निर्माण भी मेहनतकश जनता करती है, लेकिन बाद में सत्ता उस पर कब्जा करने की कोशिश करती है। भोजपुरी और अन्य जनभाषाओं का बाजारू इस्तेमाल इसलिए संभव हुआ है कि किसान आंदोलन कमजोर हुआ है। समकालीन भोजपुरी साहित्य के संपादक अरुणेश नीरन ने कहा कि जन और अभिजन के बीच हमेशा संघर्ष होता है, जन के पास एक भाषा होती है जिसकी शक्ति को अभिजन कभी स्वीकार नहीं करता, क्योंकि उसे स्वीकार करने का मतलब है उस जन की शक्ति को भी स्वीकार करना।

कवि प्रकाश उदय का मानना था कि सत्ता की संस्कृति के विपरीत जनता की संस्कृति हमेशा जनभाषा में ही अभिव्यक्त होगी। कवि बलभद्र की मुख्य चिंता भोजपुरी की रचनाशीलता को रेखांकित किए जाने और भोजपुरी पर पड़ते बाजारवादी प्रभाव को लेकर थी। प्रो. राजेंद्र कुमार ने कहा कि जीवित संस्कृतियां सिर्फ यह सवाल नहीं करतीं कि हम कहां थे, बल्कि वे सवाल उठाती हैं कि हम कहां हैं। आज अर्जन की होड़ है, सर्जन के लिए स्पेस कम होता जा रहा है। सत्ता की संस्कृति हर चीज की अपनी जरूरत और हितों के अनुसार अनुकूलित करती है, जबकि संस्कृति की सत्ता जनता को मुक्त करना चाहती है। प्रेमशीला शुक्ल ने जनभाषा के जन से कटने पर फिक्र जाहिर की। विद्रोही जी ने कहा कि हिंदी और उससे जुड़ी जनभाषाओं के बीच कोई टकराव नहीं है, बल्कि दोनों का विकास हो रहा है। हमें गौर इस बात पर करना चाहिए कि उनमें कहा क्या जा रहा है।

संगोष्ठी के अध्यक्ष और सांस्कृतिक-राजनैतिक आंदोलन में गोरख के अभिन्न साथी रामजी राय ने कहा कि गोरख उन्हें हमेशा जीवित लगते हैं, वे स्मृति नहीं हैं उनके लिए। जनभाषा में लिखना एक सचेतन चुनाव था। उन्होंने न केवल जनता की भाषा और धुनों को क्रांतिकारी राजनीति की उर्जा से लैस कर उन तक पहुंचाया, बल्कि खड़ी बोली की कविताओं को भी लोकप्रचलित धुनों में ढाला, ‘पैसे का गीत’ इसका उदाहरण है। अपने पूर्ववर्ती कवियों और शायरों की पंक्तियों को भी गोरख ने बदले हुए समकालीन वैचारिक अर्थसंदर्भों के साथ पेश किया। रामजी राय ने कहा कि जनभाषाएं हिंदी की ताकत हैं और बकौल त्रिलोचन हिंदी की कविता उनकी कविता है जिनकी सांसों को आराम न था। सत्ता के पाखंड और झूठ का निर्भीकता के साथ पर्दाफाश करने के कारण ही गोरख की कविता जनता के बीच बेहद लोकप्रिय हुई। ‘समाजवाद बबुआ धीरे धीरे आई’ संविधान में समाजवाद का शब्द जोड़कर जनता को भ्रमित करने की शासकवर्गीय चालाकी का ही तो पर्दाफाश करती है जिसकी लोकप्रियता ने भाषाओं की सीमाओं को भी तोड़ दिया था, कई भाषाओं में इस गीत का अनुवाद हुआ। रामजी राय ने गोरख की कविता ‘बुआ के नाम’ का जिक्र करते हुए कहा कि मां पर तो हिंदी में बहुत-सी कविताएं लिखी गई हैं, पर यह कविता इस मायने में उनसे भिन्न है कि इसमें बुआ को मां से भी बड़ी कहा गया है। संगोष्ठी का संचालन आलोचक आशुतोष कुमार ने किया।

सांस्कृतिक सत्र में हिरावल (बिहार) के संतोष झा, समता राय, डी.पी. सोनी, राजन और रूनझुन तथा स्थानीय गायन टीम के जितेंद्र प्रजापति और उनके साथियों ने गोरख के गीतों का गायन किया। संकल्प (बलिया) के आशीष त्रिवेदी, समीर खान, शैलेंद्र मिश्र, कृष्ण कुमार मिट्ठू, ओमप्रकाश और अतुल कुमार
राय ने गोरख पांडेय, अदम गोंडवी, उदय प्रकाश, विमल कुमार और धर्मवीर भारती की कविताओं पर आधारित एक प्रभावशाली नाट्य प्रस्तुति की। आशीष मिश्र ने भिखारी ठाकुर के मशहूर नाटक विदेशिया के गीत भी सुनाए, इस दौरान लोकधुनों का जादुई असर से लोग मंत्रमुग्ध हो गए। इस अवसर पर एक काव्यगोष्ठी भी हुई, जिसमें अष्टभुजा शुक्ल, कमल किशोर श्रमिक, रमाशंकर यादव विद्रोही, राजेंद्र कुमार, कौशल किशोर, रामजी राय, प्रभा दीक्षित, चंद्रेश्वर, भगवान स्वरूप कटियार, डॉ. चतुरानन ओझा, सच्चिदानंद, मन्नू राय, सरोज कुमार पांडेय ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। संचालन सुधीर सुमन ने किया।

सम्मेलन में प्रतिनिधियों ने मनोज सिंह को जसम, उ.प्र. के राज्य सचिव और प्रो. राजेद्र कुमार को अध्यक्ष के रूप में चुनाव किया। इस अवसर पर एक स्मारिका भी प्रकाशित की गई है, जिसमें गोरख की डायरी से प्राप्त कुछ अप्रकाशित कविताएं, जनसंस्कृति की अवधारणा पर उनका लेख और उनके जीवन और रचनाकर्म से संबंधित शमशेर बहादुर सिंह, महेश्वर और आशुतोष के लेख और साक्षात्कार हैं।

इस बीच 29 जनवरी को बिहार के आरा और समस्तीपुर में भी गोरख की स्मृति में आयोजन हुए। आरा में काव्यगोष्ठी की अध्यक्षता कथाकार नीरज सिंह, आलोचक रवींद्रनाथ राय और जसम के राज्य अध्यक्ष रामनिहाल गंुजन ने की तथा संचालन राकेश दिवाकर ने किया। इनके अतिरिक्त सुमन कुमार सिंह, ओमप्रकाश मिश्र, सुनील श्रीवास्तव, के.डी. सिंह, कृष्ण कुमार निर्मोही, भोला जी, अरुण शीतांश, संतोष श्रेयांस, जगतनंदन सहाय, अविनाश आदि ने अपनी कविताओं का पाठ किया तथा युवानीति के कलाकारों ने गोरख के गीत सुनाए। समस्तीपुर में डॉ. सुरेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में गोरख की याद में आयोजित संकल्प संगोष्ठी में रामचंद्र राय ‘आरसी’, डॉ. खुर्शीद खैर, डॉ. मोईनुद्दीन अंसारी, डॉ. एहतेशामुद्दीन, डा. सीताराम यादव और डॉ. सुरेंद्र प्रसाद सुमन ने अपने विचार रखे।

सुधीर सुमन