मंगलवार, 3 अगस्त 2010

हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति वी एन राय को बर्खास्त किया जाय
‘ज्ञानोदय’ के सम्पादक रवीन्द्र कालिया को हटाया जाय


लखनऊ, 04 अगस्त। महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति श्री विभूति नारायण राय द्वारा ‘नया ज्ञानोदय’ के नये अंक में स्त्री लेखिकाओं के सम्बन्ध में की गई टिप्पणी और उनके लिए प्रयुक्त अपमान जनक शब्द न सिर्फ महिलाओं की गरिमा को चोट पहुँचाने वाले अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है बल्कि यह महिलाओं के प्रति हिंसा की सोच से प्रेरित है। श्री राय का यह कृत्य आपराधिक है। इसलिए म गाँ अ हि वि जैसे महत्वपूर्ण विश्वविद्यालय के कुलपति के पद पर बने रहना हिन्दी समाज, साहित्य और संस्कृति के लिए अपमानजनक और घातक है। इन्हें तत्काल बर्खास्त किया जाय।

जन संस्कृति मंच, लखनऊ (जसम) ने आज बयान जारी कर यह माँग की। बयान जारी करने वालों में जसम के संयोजक व कवि कौशल किशोर, जसम की राष्टीय उपाध्यक्ष शोभा सिंह ,लेखक व पत्रकार अनिल सिन्हा, नाटककार राजेश कुमार, कथाकार सुभाष चन्द्र कुशवाहा, कलाकार मंजु प्रसाद, लेखक श्याम अंकुरम, रवीन्द्र कुमार सिन्हा, कवि भगवान स्वरूप कटियार आदि प्रमुख हैं।

जन संस्कृति मंच का कहना है कि श्री राय का यह स्त्री विरोधी रूप अचानक प्रकट होने वाली कोई घटना नहीं है। पिछले दिनांे हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में उनके द्वारा दलित व आदिवासी छात्रों व शिक्षकों को उत्पीड़ित करने, आन्दोलनकारी छात्रों से बातचीत न कर उन्हें सबक सिखाने और आन्दोलन को कुचलने जैसे अलोकतांत्रिक तौर.तरीका अपनाया जाता रहा है। अनिल चमड़िया जैसे लेखक व पत्रकार को भी इसका शिकार होना पड़ा। यही नहीं श्री राय के ऊपर एक खास जाति विशेष के साथ पक्षपात का भी आरोप लगता रहा है। लेकिन खेद की बात है कि हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति श्री राय के इस अलोकतांत्रिक और ब्राहमणवादी व्यवहार के प्रति हिन्दी लेखकों का ‘प्रगतिशील’ व ‘जनवादी’ जमात आम तौर पर चुप्पी साधे रहा है और आज भी यह जमात मामले की लीपा पोती में लगा है।

जन संस्कृति मंच का कहना है कि पिछले दिनों बतौर कुलपति श्री राय ने जिस समाज और संस्कृति विरोधी सामंती सोच का परिचय दिया है, ‘नये ज्ञानोदय’ में महिला लेखिकाओं पर उनकी टिप्पणी उसी का विस्तार है। जसम ने ‘नया ज्ञानोदय’ के सम्पादक श्री रवीन्द्र कालिया की भी आलोचना की है। लेखक की अपनी स्वतंत्रता है तो सामग्री का चयन सम्पादक की स्वतंत्रता है। लेकिन इस प्रसंग में लगता है कि श्री राय के साथ श्री कालिया की सहमति है अन्यथा ऐसी सामग्री प्रकाशित ही नहीं हो पाती। श्री कालिया इस सम्बन्ध में अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। इसलिए जरूरी है कि ‘ज्ञानोदय’ जैसी पत्रिका की गरिमा को बचाने के लिए श्री रवीन्द्र कालिया केा सम्पादक पद से हटाया जाय।

कौशल किशोर
संयोजक
जन संस्कृति मंच, लखनऊ

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