(शहीद छात्र नेता चन्द्रशेखर के प्रति)
चन्दू
तुम गुनगुना रहे थे
तुम बता रहे थे कि
आजादी, न्याय, सच्चाई, स्वाभिमान
मुर्दा शांति
तुम पिता के सपने
सच के आदिम पंखों की उड़ान पर
विद्रोह से प्रज्जवलित
विद्रोह के सारे खतरे उठाते हुए
तुम्हें विश्वास था
तुम कहते थे
तुम अक्सर कहा करते थे
कामरेड
तुम्हारी शहादत की ताकत से
और दिनदहाड़े सीवान की सड़क पर
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भगवान स्वरूप कटियार: परिवर्तन की आकांक्षा के कवि
कौशल किशोर
भगवान स्वरूप कटियार (जन्म: 1 फरवरी १९५०) ऐसे कवि हैं जो बिना शोर किए काम में यकीन करते हैं। इनका व्यक्तित्व जितना सरल - सहज है , जितनी सादगी है इनमे , इनकी कविता की दुनिया भी ऐसी ही है , बिल्कुल आत्मीय। इनकी कविताओं को पढते-सुनते हुए बार-बार लगता है जैसे हमारी ही दुनिया व्यक्त हो रही है। वे घटनायें जो हमें लहूलुहान कर देती हैं , हमारे जीवन व विचार पर गहरा असर डालती हैं , इन कविताओं में उन्हीं की अभिव्यक्ति है। इसीलिए ये कविताएँ हमें प्रभावित करती हैं और हमारे विचार, समझ व संवेदना को सघन करते हुए हमारा यथार्थ बोध बढाती हैं।
कवि भगवान स्वरूप कटियार दुनिया को प्रेम करने वाले और उसे सुन्दर बनाने के लिए अपनी सारी जिन्दगी लगा देने वाले उन साथियों से प्रेरित हुए बिना नहीं रह पाते जो इस जंग के योद्धा रहें हैं। जो शहीद हो गये या बिछड गये। ‘शहादत की प्रतिघ्वनि’ ऐसी ही कविता है जो उन्होंने शहीद छात्र नेता चन्द्रशेखर की याद में लिखी है। यहाँ शोक को शक्ति में बदल देने का संकल्प है, ‘तुम्हारे खून से युवा होने का जज्बा पैदा’ करने की चाहत है। शहीद भगत सिंह , बेंजामन मोलायास , जापानी कवि तोगे संकिची , अवतार सिंह पाश , कामरेड विनोद मिश्र , कथाकर मोहन थपलियाल , स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी पिता आदि सभी भगवान स्वरूप कटियार की कविताओं के माध्यम से हमारे बीच जीवित हो उठते है।
भागवान स्वरूप कटियार के दूसरे कविता संग्रह ' हवा का रूख टेढा है ' की भूमिका में वरिष्ठ कवि त्रिलोचन ने लिखा है ' नयी कविता पुरानी कविता से कई बातों में भिन्न हैं। नयी कविता में संवेदना के साथ-साथ मौजूदा हालातों से जूझने की कुव्वत भी है। अब ऐसी कविताएँ लिखी जा रही हंै कि मुट्ठियाँ तन जायें और आसमान में बदलाव के स्वर गूँज उठे। कटियार ऐसी ही कविताओं के प्रतिनिधि कवि हैं। इनकी कविताओं में नया तेवर है। ये संघर्ष और परिवर्तन की आंकाक्षा के कवि है ' , मैं समझता हूँ भगवान स्वरूप कटियार पर त्रिलोचन की यह टिप्पणी सर्वथा सटीक है, न सिर्फ कटियार की कविताओं के संबंध में बल्कि आज की कविताओं के संबंध में भी क्योंकि कला, साहित्य, कविता या कोई भी सृजनात्मक-रचनात्मक कर्म एक गहन मानवीय चेष्टा है। वह कभी भी अपने समाज व समय से असंपृक्त रह ही नहीं सकता। यही कविता की सामाजिकता है। भगवान स्वरूप कटियार का कवि-कर्म अपनी सामाजिक भूमिका के प्रति सजग-सचेत हैं, यहीं उन्हें महत्वपूर्ण कवि बनाता है तथा उनकी कविता को हमारे लिए जरूरी।
1 टिप्पणी:
कविता सुन्दर है .चंदू की जिंदगी हमारे समयकी सब से जरूरीकविता की तरहखूबसूरत थी. और मार्मिक .इस कविता को पढ़ते हुए चंदू की कितनी ही भंगिमाएं याद आती हैं,कवी ने नए दौर के नौजवानों के लिए चंदू को पुनराविष्कृत भी किया है. उन्हें बधाई. और आप को भी. इस शानदार ब्लॉग के लिए. .
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