बुधवार, 25 नवंबर 2009

भगवान स्वरुप कटियार की कविता

शहादत की प्रतिध्वनि
(शहीद छात्र नेता चन्द्रशेखर के प्रति)

चन्दू
तुम, प्रकृति की लय पर
रच रहे थे जिन्दगी के गीत
पसीने, खून, मिट्टी
और रोशनी की बाते कर रहे थे तुम।

तुम गुनगुना रहे थे
बगावत की धुनें
और इतिहास के रंगमंच पर
प्रचण्ड तूफान उठा देने वाले
नाटक की तैयारी कर रहे थे तुम।

तुम बता रहे थे कि
अज्ञानता और गुलामी के
बन्द दरवाजे कैसे तोड़े जाते हैं।

आजादी, न्याय, सच्चाई, स्वाभिमान
और सौन्दर्य भरी जिन्दगी के लिए
तुम रोप रहे थे, इन्कलाब की पौध।

मुर्दा शांति
और कायर निठल्ले विमर्शो कें विरुद्ध
तुम दे रहे थे युद्ध को आमंत्रण।

तुम पिता के सपने
और मां की प्रतीक्षा को
आंसू के कतरे की तरह
जज्ब किये थे अपने सीने में
जलते हुए समय की छाती पर
यात्रा करते हुए
तुम सदी के जालिमो से
लोहा ले रहे थे
और उनसे छीन लाना चाहते थे
मानवता का दीप्तमान वैभव।

सच के आदिम पंखों की उड़ान पर
तुम लिख रहे थे
न्याय की गरिमा और उम्मीद की कविता
तुम बीहड़, कठिन जोखिम भरी
सुदूर यात्रा पर थे
और पहुंचना चाहते थे
उन धु्रवान्तों तक
जहां प्रतीक्षा थी
तुम्हारे आतुर ह्नदय
और सक्रिय विचारो के ताप की।

विद्रोह से प्रज्जवलित
राहों को रोशन करता हुआ था
तुम्हारा संघर्षशील जीवन
जो आकाश के अंधेरे से बूंद-बूंद
उजाला बन टपक रहा था प्रतिपल।

विद्रोह के सारे खतरे उठाते हुए
तुम मशगूल थे अपने मकसद में
बिना रुके, बिना ठिठके
तुम पहुंचना चाहते थे
अपने फैसले तक ।

तुम्हें विश्वास था
कि तुम्हारे सधे कदमो की धमक से
सहम कर खत्म हो जायेंगे
जालिमों के रचे अंधेरे ।

तुम कहते थे
देर से फैसले पर पहुंचना
आदमी को बूढ़ा कर देता है
इसलिए जीवन के प्याले को
छक कर पियो
और लगाओ चुनौतियों के ठहाके
पर कभी मत भूलो उन्हें
जिनके प्याले खाली हैं।

तुम अक्सर कहा करते थे
हमारी योजनाएं आश्चर्यजनक हों
पर व्यवहारिक भी
और सपने देखने की आदत
हमें सदैव बनाये रखनी होगी
ताकि अंधेरों में ढकेल दी गयीं
अच्छी चीजों को
हम फिर से ला सकें उजाले में।

कामरेड
आज हमें तुम्हारी
कल से ज्यादा जरूरत है
इसलिए तुम्हें अवतरित करना है
विचार की ताकत के रूप में
और ले जाना है जड़ों तक
और वहां से ऊपर उठाना है
फैली हुई टहनियों के पत्तों पर
आकाश की ओर।

तुम्हारी शहादत की ताकत से
हमें फिर बुलन्द करनी है आवाज
‘मुक्ति’ शब्द की
तुम्हारी शहादत की ताकत से ही
हमें प्राप्त करना है
आकाश से उसका नीलापन
वृक्षों से उनका हरापन
सूर्याेदय से उसकी लाली।

और दिनदहाड़े सीवान की सड़क पर
बहे हुए तुम्हारे खून से
युवा होने का जज्बा
पैदा करना चाहता हूँ
ताकि हथियारबन्द हत्यारों के गिरोहों
भुखमरी और युद्धों के बीच
हम रच सकें
उम्मीद और सर्जना के गीत
और जीवन का नया सौन्दर्य शास्त्र।
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भगवान स्वरूप कटियार: परिवर्तन की आकांक्षा के कवि
कौशल किशोर

भगवान स्वरूप कटियार (जन्म: 1 फरवरी १९५०) ऐसे कवि हैं जो बिना शोर किए काम में यकीन करते हैं। इनका व्यक्तित्व जितना सरल - सहज है , जितनी सादगी है इनमे , इनकी कविता की दुनिया भी ऐसी ही है , बिल्कुल आत्मीय। इनकी कविताओं को पढते-सुनते हुए बार-बार लगता है जैसे हमारी ही दुनिया व्यक्त हो रही है। वे घटनायें जो हमें लहूलुहान कर देती हैं , हमारे जीवन व विचार पर गहरा असर डालती हैं , इन कविताओं में उन्हीं की अभिव्यक्ति है। इसीलिए ये कविताएँ हमें प्रभावित करती हैं और हमारे विचार, समझ व संवेदना को सघन करते हुए हमारा यथार्थ बोध बढाती हैं।
भगवान स्वरूप कटियार की कविताओं में जन पीडा है तो मुक्ति की छटपटाहट भी है। इनकी कविताओं में ' मैं ' है ' माँ ' है , ' प्रेम ' है , ‘दुख’ है , ‘ख्वाब’ है , ' दलदल ' है, ' घर ' है और वह धरती है जो आज निशाने पर हैं। परिवार, समाज, देश और दुनिया से ये कविताएँ गुजरती हैं। इनकी विसंगतियों से जूझती हैं और अपनी राह तलाशती हैं। इसी से भगवान स्वरूप कटियार के काव्य व्यक्तित्व का निर्माण होता है। यहाँ भाषा की बाजीगरी नहीं हैं। अपनी बात को कहने के लिए किसी अस्वाभाविक प्रतीक , बिम्ब या मुहावरे की तलाश भी नहीं हैं। यहाँं बोधगम्यता व पठनीयता है। समय व समाज को समझने-समझाने की चेष्टा है। वास्तव में ये जटिल यथार्थ की सहज सरल कविताएँ हैं और यही भगवान स्वरूप कटियार की काव्य-कला है या इनकी खासियत है।

कवि भगवान स्वरूप कटियार दुनिया को प्रेम करने वाले और उसे सुन्दर बनाने के लिए अपनी सारी जिन्दगी लगा देने वाले उन साथियों से प्रेरित हुए बिना नहीं रह पाते जो इस जंग के योद्धा रहें हैं। जो शहीद हो गये या बिछड गये। ‘शहादत की प्रतिघ्वनि’ ऐसी ही कविता है जो उन्होंने शहीद छात्र नेता चन्द्रशेखर की याद में लिखी है। यहाँ शोक को शक्ति में बदल देने का संकल्प है, ‘तुम्हारे खून से युवा होने का जज्बा पैदा’ करने की चाहत है। शहीद भगत सिंह , बेंजामन मोलायास , जापानी कवि तोगे संकिची , अवतार सिंह पाश , कामरेड विनोद मिश्र , कथाकर मोहन थपलियाल , स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी पिता आदि सभी भगवान स्वरूप कटियार की कविताओं के माध्यम से हमारे बीच जीवित हो उठते है।

भागवान स्वरूप कटियार के दूसरे कविता संग्रह ' हवा का रूख टेढा है ' की भूमिका में वरिष्ठ कवि त्रिलोचन ने लिखा है ' नयी कविता पुरानी कविता से कई बातों में भिन्न हैं। नयी कविता में संवेदना के साथ-साथ मौजूदा हालातों से जूझने की कुव्वत भी है। अब ऐसी कविताएँ लिखी जा रही हंै कि मुट्ठियाँ तन जायें और आसमान में बदलाव के स्वर गूँज उठे। कटियार ऐसी ही कविताओं के प्रतिनिधि कवि हैं। इनकी कविताओं में नया तेवर है। ये संघर्ष और परिवर्तन की आंकाक्षा के कवि है ' , मैं समझता हूँ भगवान स्वरूप कटियार पर त्रिलोचन की यह टिप्पणी सर्वथा सटीक है, न सिर्फ कटियार की कविताओं के संबंध में बल्कि आज की कविताओं के संबंध में भी क्योंकि कला, साहित्य, कविता या कोई भी सृजनात्मक-रचनात्मक कर्म एक गहन मानवीय चेष्टा है। वह कभी भी अपने समाज व समय से असंपृक्त रह ही नहीं सकता। यही कविता की सामाजिकता है। भगवान स्वरूप कटियार का कवि-कर्म अपनी सामाजिक भूमिका के प्रति सजग-सचेत हैं, यहीं उन्हें महत्वपूर्ण कवि बनाता है तथा उनकी कविता को हमारे लिए जरूरी।

1 टिप्पणी:

आशुतोष कुमार ने कहा…

कविता सुन्दर है .चंदू की जिंदगी हमारे समयकी सब से जरूरीकविता की तरहखूबसूरत थी. और मार्मिक .इस कविता को पढ़ते हुए चंदू की कितनी ही भंगिमाएं याद आती हैं,कवी ने नए दौर के नौजवानों के लिए चंदू को पुनराविष्कृत भी किया है. उन्हें बधाई. और आप को भी. इस शानदार ब्लॉग के लिए. .