बुधवार, 24 मार्च 2010

मार्कंडेय स्मृति


इलाहाबाद का सांस्कृतिक हलका डूबा मार्कण्डेय के शोक में


२० मार्च, २०१०। इलाहाबाद.

आज सायं ५ बजे से वरिष्ठ कथाकार मार्कण्डेय की स्मृति सभा का आरंभमहात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय विश्विद्यालय दूरस्थ शिक्षा इकाई केसत्यप्रकाश मिश्र स्मृति सभागर में हुआ. इलाहाबाद शहर के तमामबुद्धिजीवी, संस्कृतिकर्मी और वाम कार्यकर्ता मार्कण्डेय को श्रद्धांजलिदेने उपस्थित थे. इस अवसर पर उपस्थित वरिष्ठ आलोचक मैनेजर पांडेय नेमार्कण्डॆय के साथ अपने २५ साल पुराने रिश्ते को याद किया. उन्होंने कहाकि नई कहानी आंदोलन के समय प्रेमचंद की परम्परा के खिलाफ़ जितना कुछ लिखागया, उतना न उस दौर के पहले और न उसके बाद लिखा गया. नई कहानी के संगविकसित आलोचना ने मानो शहरीपन को ही कहानी का पर्याय बना दिया. केंद्रमें लाए गए राकेश, राजेंद्र यादव और कमलेश्वर जबकि बदलते हुए ग्रामीणयथार्थ को सामने लाने वाले कथाकारों खासकर रेणु, मार्कण्डेय औरशिवप्रसाद सिंह की उपेक्षा की गई। दरअसल, यही लोग प्रेमचंद की परम्परा कोआगे बढ़ा रहे थे. ये ऎसे कथाकार थे जो आलोचना के बल पर नहीं, बल्कि अपनीकहानियों के दम पर, उनके पाठकों के दम पर हिंदी जगत में समादर के पात्ररहे. एक कहानीकार के रूप में मार्कण्डेय के महत्व को सचमुच रेखांकितकरने के लिए उस दौर की कहानी संबंधी बहसों का पुनर्मूल्यांकन ज़रूरी है.प्रों मैनेजर पांडेय ने कहा कि मार्कण्डॆय व्यापक धरातल पर जनवादी औरप्रगतिशील रचनाओं को देखते थे, कभी उन्होंने कट्टरता नहीं बरती, विरोधकरनेवालों की भी ज़रूरत के वक्त मदद करने से नहीं झिझके।


वरिष्ठ कथाकारशेखर जोशी मार्कण्डॆय का स्मरण कर भावुक हो उठे. उन्होंने कहा किमार्कण्डॆय जिस परम्परा के थे, उसे वहन करने वालों का अतिशय सम्मान करतेथे. 'गुलरा के बाबा' नाम की कहानी में भी उनका यह दृष्टिकोण व्यक्त हुआहै. शेखर जी ने कहा कि उनका और अमरकांत का पहला कहानी संग्रह तथा ठाकुरप्रसाद सिंह का पहला काव्य-संग्रह मार्कण्डॆय जी के 'नया साहित्य'प्रकाशन से ही छप कर आया। शेखरजी ने कहा कि सरल स्वभाव के होने के चलतेवे कष्ट देने वाले लोगों को भी आसानी से माफ़ कर देते थे।


समकालीन जनमतके संपादक श्री रामजी राय ने कहा कि इलाहाबाद में फ़िराक़ के बादनौजवानों की इतनी हौसला आफ़ज़ाई करने वाला मार्कण्डॆय के अलावा कोई दूसरावरिष्ठ लेखक न था। किसान जीवन उनके रचना कर्म और चिंताओं की धुरी बनारहा. रामजी राय ने उनसे जुड़े अनेक आत्मीय प्रसंगों को याद करते हुएबताया कि वे किस्सागो तबीयत के आदमी थे. उनके पास बैठने वालों को कतईअजनबियत का अहसास नहीं होता था. उनके व्यक्तित्व की सरलता बांध लेती थी.


प्रो. राजेंद्र कुमार ने कहा कि इलाहाबाद शहर की कथाकार-त्रयी यानीअमरकांत-मार्कण्डेय-शेखर जोशी में से एक कड़ी टूट गई है. 'कथा' पत्रिकाजिसके वे जीवनपर्यंत संपादक रहे, को यह श्रेय जाता है कि उसने बाद मेंप्रसिद्ध हुए अनेक रचनाकारों की पहली रचनाएं छापीं. कथाकार अनिता गोपेशने कहा कि मार्कण्डेय जी विरोधी विचारों के प्रति सदैव सहनशील थे और नएलोगों को प्रोत्साहित करने का कोई मौका हाथ से जाने न देते थे।


वयोवृद्धस्वतंत्रता संग्राम सेनानी कामरेड ज़िया-उल-हक ने मार्कण्डेय जी को यादकरते हुए कहा कि प्रतिवाद , प्रतिरोध के हर कार्यक्रम में आने की , सदारतकरने की सबसे सहज स्वीकृति मार्कण्डेय से मिलती थी. छात्रों और बौद्दिकोंके तमाम कार्यक्रमों में वे अनिवार्य उपस्थिति थे।


स्मृति सभा का संचालनविवेक निराला और संयोजन संतोष भदौरिया ने किया . मार्कण्डेय ( जन्म-२ मई, १९३०, जौनपुर -- मृत्यु- १८ मार्च,२०१०, दिल्ली ) पिछले दो सालों से गले के कैंसर से संघर्षरत थे. वे अपनेपीछे पत्नी विद्या जी, दो पुत्रियों डा. स्वस्ति सिंह, शस्या नागर वपुत्र सौमित्र समेत भरा पूरा परिवार छोड़ गये. बीमारी के दिनों में भीयुवा कवि संतोष चतुर्वेदी के सहयोग से 'कथा' पत्रिका पूरे मनोयोग सेनिकालते रहे. इतना ही नहीं इलाहाबाद के तमाम साहित्यिक-सांस्कृतिककार्यक्रमों में आना-जाना उन्होंने बीमारी के बावजूद नहीं छोड़ा. 1965में उन्होंने माया के साहित्य महाविशेषांक का संपादन किया। कई महत्वपूर्णकहानीकार इसके बाद सामने आये. 1969 में उन्होंने साहित्यिक पत्रिका 'कथा'का संपादन शुरू किया. उन्होंने जीवनभर कोई नौकरी नहीं की. अग्निबीज, सेमलके फूल (उपन्यास), पान फूल, महुवे का पेड़, हंसा जाए अकेला, सहज और शुभ,भूदान, माही, बीच के लोग (कहानी संग्रह), सपने तुम्हारे थे (कवितासंग्रह), कहानी की बात (आलोचनात्मक कृति), पत्थर और परछाइयां (एकांकीसंग्रह) आदि उनकी महत्वपूर्ण कृतियां हैं। हलयोग (कहानी संग्रह)प्रकाशनाधीन है. उनकी कहानियों का अंग्रेजी, रुसी, चीनी, जापानी, जर्मनीआदि में अनुवाद हो चुका है. उनकी रचनाओं पर 20 से अधिक शोध हुएहैं.'अग्निबीज' उपन्यास का दूसरा खंड लिखने, आत्मकथा लिखने, अप्रकाशितकविताओं का संग्रह निकलवाने, मसीही मिशनरी कार्यों पर केंद्रित अधूरेउपन्यास ''मिं पाल' को पूरा करने तथा 'हलयोग' शीर्षक से नया कहानी संग्रहप्रकाश में लाने की उनकी योजनाएं अधूरी ही रह गईं। राजीव गांधी कैंसरइंस्टीट्यूट में इलाज करा रहे मार्कण्डेय ने १८ मार्च को दिल्ली मेंआखीरी सांसें लीं. अगले दिन( १९ मार्च )को उनका शव रींवांचल एक्सप्रेससे इलाहाबाद लाया गया तथा एकांकी कुंज स्थित उनके आवास पर सुबह १० बजे सेदोपहर १ बजे तक लोगों के दर्शनार्थ रखा गया. इसके बाद रसूलाबाद घाट परअंत्येष्टि सम्पन्न हुई.


अंतिम दर्शन के समय और स्मृति सभा में उपस्थितसैकड़ों लोगों में कथाकार अमरकांत, शेखर जोशी, दूधनाथ सिंह, सतीश जमाली,नीलकांत, विद्याधर शुक्ल, बलभद्र, सुभाष गांगुली, नीलम शंकर, अनितागोपेश,असरार गांधी,श्रीप्रकाश मिश्र, उर्मिला जैन, महेंद्र राजा जैन,आलोचक मैनेजर पांडेय, अली अहमद फ़ातमी, राजेंद्र कुमार, रामजी राय, प्रणयकृष्ण,सूर्यनारायण, मुश्ताक अली, रामकिशोर शर्मा, कृपाशंकर पांडेय, कविहरिश्चंद्र पांडेय, यश मालवीय, विवेक निराला,श्लेष गौतम, नंदल हितैषी,सुधांशु उपाध्याय, शैलेंद्र मधुर,संतोष चतुर्वेदी, रंगकर्मी अनिल भौमिक,अनुपम आनंद और प्रवीण शेखर, संस्कृतिकर्मी ज़फ़र बख्त, सुरेंद्र राही,वरिष्ठ अधिवक्ता उमेश नारायण शर्मा और विनोद्चंद्र दुबे, इलके महापौरचौधरी जितेंद्र नाथ, ट्रेड यूनियन व वाम दलों के नेतागण तथा ज़िले के कईप्रशासनिक अधिकारी शामिल थे.


इलाहाबाद से दुर्गा सिंह

रविवार, 21 मार्च 2010

कवि सईद लखनऊ में : कविता पाठ और संवाद




दूर से आती एक प्रवासी की
आवाज
अनिल सिन्हा


फिनलैंड निवासी हिन्दी के कवि, चित्रकार, फोटोग्राफर व अनुवादक सईद इन दिनों हिन्दुस्तान की यात्रा पर हैं। वे 16 मार्च को लखनऊ आये और उसी दिन जन संस्कृति मंच की ओर से उनकी कविता पाठ और उनके साथ बातचीत का कार्यक्रम राज्य सूचना केन्द्र में रखा गया। भवाली उत्तराखंड में जन्में सईद विज्ञान के स्नातक और विज्ञानी बनने की आकांक्षा के साथ साथ वह काफी दिनों दिल्ली में स्वतंत्र रूप से पत्रकारिता व सोवियत सूचना विभाग में अनुवादक का काम करते रहे। कविताएँ लिखने व पेंटिंग का काम वे शुरू से करते रहे। ऐसी उत्पीड़नकारी स्थितियाँ पैदा हुई जिनकी वजह से उन्हें देश छोड़ना पड़ा। वे 1972 में फिनलैंड गये और वहीं बस गये। वहीं की नागरिकता भी ले ली। तब से कई दशक गुजर गये। लेकिन लखनऊ की गोष्ठी में देश से जाने के कारण के बारे में पूछे जाने पर वे इतने व्यथित हो उठे कि उन दिनों जो कुछ उनके साथ इस देश में घटा, उसे मात्र याद कर उनकी आँखें भर आईं। सईद अकेले नहीं हैं। तसलीमा नसरीन, मकबूल फिदा हुसैन जैसे अनगिनत लोग हैं जिन्हें देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है।

सईद की कविताओं में इस दुख-विषाद की अभिव्यिक्ति मिलती है। यहाँ प्राकृतिक और अन्तरिक्ष के सौन्दर्य हैं, मांसलता है, अदभुत संवेदना, प्रतीक, बिम्ब और कल्पनाशीलता है साथ ही बेहतर मानवोचित समाज बनाने की जन आकांक्षा व संघर्ष के प्रति प्रतिबद्धता। इसीलिए वे लिखते हैं - ‘तपते मरूस्थल/अंकुरित हो रहे हैं/स्वप्न, हरित/खिलेंगे पुष्प/रक्ताभ/खंडित हो जायेंगी/शिलाएँ।’

बातचीत के दौरान उन्होंने अपनी चित्रकला से लेकर आधुनिक चित्रकला को लेकर तथा फिनलैंड में कला व साहित्य पर बातचीत की। सईद ने वहाँ के साहित्य, संस्कृति व थियेटर आदि की गतिविधियों पर चर्चा की और बताया कि किस तरह फिनलैंड की सरकार के पास एक सुस्पष्ट सांस्कृतिक नीति है। वह अपने साहित्य के प्रचार.प्रसार के लिए बड़ी राशि खर्च करती है। इसी के तहत सईद ने प्रसिद्ध फिनिश उपन्यासकार मिका वाल्तरी के उपन्यास ‘सिनुहे मिश्रवासी’ का हिन्दी में अनुवाद किया है जिसे राजकमल प्रकाशन छाप रहा है। इसके लिए फिनिश सरकार राजकमल प्रकाशन को लाखो रुपये देगी।

फिनलैंड के समाज की चर्चा करते हुए सईद का कहना था कि वहाँ समाज में महिलाओं को बराबरी की स्थिति हासिल है और अविवाहित मातृत्व को भी मान्यता है। फिनलैंड में लोकतांत्रिक व्यवस्था है। यहाँ दक्षिणपंथी, वामपंथी व मध्यमार्गी दल हैं। इन दिनों वहाँ की चिन्ताजनक हालत यह है कि नवनाजीवाद और नस्लवाद उभर रहा है। मंदी का यहाँ भी असर है। अमेरीका के बढ़ते सांस्कृतिक व राजनीतिक वर्चस्व को यहाँ के नागरिक पसन्द नहीं करते हैं।

इस मौके पर सईद ने अपनी कई कविताएँ सुनाई। सईद का कहना था कि जब मैं इन कविताओं को प्रकाशित कराऊँगा, इसका शीर्षक होगा - ‘दूर से आती एक प्रवासी की आवाज’। सईद की कविताओं पर हुई चर्चा में अजय सिंह, विनय श्रीकर, गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव, भगवान स्वरूप कटियार, चन्द्रेश्वर, वीरेन्द्र सारंग, नसीम साकेती, ऋतु सिन्हा, शोभा सिंह, हरिओम, श्याम अंकुरम, राजेश कुमार, कल्पना पाण्डेय, ताहिरा हसन, के के वत्स, विमल किशोर, अवन्तिका राय, कौशल किशोर आदि ने भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन किया अनिल सिन्हा ने।



सईद की पाँच कविताएँ

एक
तपते मरूस्थल मेंअंकुरित
हो रहे हैंस्वप्न,हरित।
खिलेंगे पुष्परक्ताभ।
खण्डित हो जायेंगीशिलाएँ।
शेष रह जाएंगेदीवारों
परआदिम भिŸाी चित्रमात्र।
दो इतिहासों के
बीचअनकही गाथाएँ।
करेंगे जिनका
मूल्यांकनअभी
अजन्मे शिशु।
अनवरत प्रवाह
मेंबहते क्षणतब
ठिठक जायेंगे पल
भर के लिए
और नक्षत्रो से
टपकेंगेंअश्रु।
समुद्र में तैर रहे होंगेद्वीप असंख्य।

दो

खण्ड खण्ड
ख्ण्डित होता
आकाशगिरता है
धरती पर।
दीवारों परटिकी हुई
स्मृतियाँ।
या फिरमृत लोगों
केधुँधलाते दस्तखत।
बारिश की बूँदों
मेंबुना हुआ
इंद्रधनुष।
हवा में तैरते हुए
चेहर,ेपरिचय,नाम।
शेष है साँसों में
अभी गर्माहट।
कूँची से उभरते रंग,बनते दृश्य।
झिझकते चेहरों
मेंझलकता,
अटकता इतिहास।

तीन

रेत में धँसे
हुएपदचिन्ह।
अर्सा गुजर गयाइधर
सेकारवाँ को गुजरे हुए।
तटों पर टूटती
हुईसमुद्र की तरंगे,
ध्वनित
होताक्या कुछ।
इतिहास रूकता
हैठिठकता
हैपलभर
देखता हैडालता है
फिर गुजर जाता
हैबढ़ जाता है आगे।
इस बीच
कितने षडयंत्र रचे
गयेकितने
रक्तपातघटित हुए।

चार

रात्रि मेंडूब
जाता हैसमग्र
अस्तित्व,
फिर दुबारा
उभरने के लिएदूर
कहीं,सुदूर
वीराने द्वीपों पर।
शरद मेंउठता है
तूफानी बवण्डर।
शिशिरदेता
हैठण्डी
दस्तकेंबन्द दरवाजों पर।
जब संध्या ढँक
लेती हैछायाओं
कोतब शुरू होता
हैसपनों काएक नया सिलसिला।
एक पूरा दिवसगुजर
जाता है,टिक जाता
हैक्षितिज पर,
क्षितिज के सहारे।

पाँच

क्षितिज से क्षितिज
तकफैला
हुआएक सूर्य,
एक पूरा दिवस।
नक्षत्रों के नेत्रबंद हो जाते हैं
बादलों में
गढ़े हुएचेहरे
चहलकदमी करते
हैंबंद कमरे के अकेलेपन में।
हिम पिघलता
हैधीमे बहुत ही
धीमे-धीमेवसंत
उठाता
हैअपना सरधरती से।
आकाश सेटपकता
हैधीमा धीमा संगीत।
शिराओं मेंदौड़ते हैं मौसम।