मंगलवार, 24 अगस्त 2010

गिरीश तिवारी गिर्दा समृति


गिर्दा के निधन से जनता ने अपना कलाकार खो दिया है - जसम


सुपरिचित गायक, कलाकार और संस्कृतिकर्मी गिरीश तिवारी गिर्दा के निधन पर जन संस्कृति मंच ने गहरा शोक प्रकट किया है और कहा है कि उनके निधन से जनता ने अपना गायक और कलाकार खो दिया है। गिर्दा ऐसे संस्कृतिकर्मी हैं जिनका कला संसार जन आंदोलनों के बीच निर्मित होता है।

गिरीश तिवार गिर्दा का निधन कल 22 अगस्त को हुआ। उनके निधन पर जन संस्कृति मंच (जसम) लखनऊ के संयोजक कौशल किशोर ने शोक प्रकट करते हुए कहा कि 80 के दशके में उŸाराखंड में जो लोकप्रिय आन्दोलन चला, गिर्दा उसके अभिन्न अंग थे। इसी दौर में जन सांस्कृतिक आंदोलन को भी संगठित करनें के प्रयास तेज हुए जिसकी परिणति नैनीताल में ‘युवमंच’ तथा हिन्दी।उर्दू प्रदेशों में जन संस्कृति मंच के गठन में हुई। गिर्दा इस प्रयास के साथी रहे हैं।


जसम की कार्यकारिणी के सदस्य, लेखक व पत्रकार अजय सिंह ने गिर्दा को याद करते हुए कहा कि गिर्दा का क्रान्तिकारी वामपंथी राजनीतिक व सांस्कृतिक आंदोलन से गहरा जुड़ाव था और वे इंडियन पीपुल्य फ्रंट (आई पी एफ) और जन संस्कृति मंच से जुड़े थे। उनका असमय जाना बड़ी क्षति है।


नाटककार राजेश कुमार ने शोक संवोदना प्रकट करते हुए कहा कि गिर्दा ने थियेटर को विचार को संप्रेषित करने का माध्यम बनाया। उनके गीतों, नाटकों व रंगकर्म में हमें बदलाव के विचारों के प्रति गहरी प्रतिबद्धता देखने को मिलती है। यह प्रतिबद्धता जनता और उसके आंदोलन से गहरे जुड़ाव से ही संभव है।


जसम की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व कवयित्री शोभा सिंह ने कहा कि गिर्दा की कला व रचनाएँ जन आंदोलनों से प्रेरित है और उसी से ऊर्जा ग्रहण करती है तथा अपने रचना कर्म के द्वारा गिर्दा जन आंदोलन को आवेग प्रदान करते हैं। यह एक बड़ी और दुलर्भ बात है जो हमें गिर्दा में मिलती है। यह गिर्दा की खासियत है।


कवि भगवान स्वरूप कटियार, कथाकार सुभाष चन्द्र कुशवाहा, अलग दुनिया के के0 के0 वत्स, श्याम अंकुरम, रवीन्द्र कुमार सिन्हा, वीरेन्द्र सारंग आदि जन जन संस्कृति मंच से जुड़े लेखकों और संस्कृतिकर्मियों ने भी गिरीश तिवार गिर्दा के निघन पर शोक प्रकट किया है।

गिरीश तिवाड़ी ‘गिरदा’ की कविता


सियासी उलट बाँसी


पानी बिच मीन पियासी

खेतो में भूख उदासी

यह उलट बाँसियाँ नहीं कबीरा, खालिस चाल सियासी

पानी बिच मीन पियासी


लोहे का सर पाँव काठ के

बीस बरस में हुए साठ के

मेरे ग्राम निवासी कबीरा, झोपड़पट्टी वासी

पानी बिच मीन पियासी

सोया बच्चा गाये लोरी

पहरेदार करे है चोरी

जुर्म करे है न्याय निवारण, नयाय चढ़े है फाँसी

पानी बिच मीन पियासी


बंगले में जंगला लग जाये

जंगल में बंगला लग जाय

वन बिल ऐसा लागू होगा, मरे भले वनवासी

पानी बिच मीन पियासी

जो कमाय सो रहे फकीरा

बैठे - ठाले भरें जखीरा

भेद यही गहरा है कबीरा, दीखे बात जरा सी

पानी बिच मीन पियासी


(यह कविता लखनऊ से प्रकाशित ‘जन संस्कृति’ के अंक-6, अप्रैल-जून 1985 में प्रकाशित हुई थी। वहीं से ली गई है।)

बुधवार, 11 अगस्त 2010

लखनऊ के लेखको व संस्कृतिकर्मियों की अपील: विभूति नारायण राय और रविन्द्र कालिया का बहिष्कार हो

लखनऊ के लेखकों, संस्कृतिकर्मियों और महिला व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति विभूति नारायण राय द्वारा ‘नया ज्ञानोदय’ के अंक में हिन्दी लेखिकाओं के सम्बन्ध में की गई टिप्पणी तथा उनके लिए प्रयुक्त ‘छिनाल’ जैसे अपमान जनक शब्द पर अपना गहरा विरोध जताया और कहा कि यह महिलाओं के प्रति हिंसा की सोच से प्रेरित है। विभूति नारायण और ‘नया ज्ञनोदय’ के सम्पादक रवीन्द्र कालिया साहित्य में जिस ‘सबसे बेबाक’ की बात कर रहे हैं, वह वास्तव में यौन हिंसा और दबंगई है। महिला सम्मान और लोकतांत्रिक मूल्यों की हिफाजत के लिए जरूरी है कि इन प्रवृŸिायों का विरोध हो और इनका सामाजिक व सांस्कृतिक बहिष्कार किया जाय।

यह विचार ‘साहित्य में यौन हिंसा और दबंगई के खिलाफ’ आयोजित संगोष्ठी में उभर कर आया। कार्यक्रम आज यहा राज्य सूचना निदेशालय के सभागार में जन संस्कृति मंच (जसम) अलग दुनिया और प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (येपवा) ने ‘नया ज्ञानोदय’ में महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय द्वारा हिन्दी लेखिकाओं के सम्बन्ध में की गई अपमानजनक टिप्पणी के परिप्रेक्ष्य में संयुक्त रूप से आयोजित किया था। संगोष्ठी की अध्यक्षता एपवा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ताहिरा हसन ने की, वहीं विषय प्रवर्तन किया जसम की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व कवयित्री शोभा सिंह ने। कार्यक्रम का संचालन किया अलग दुनिया के कृष्णकान्त वत्स ने।
इस मौके पर पर विचार रखने वालों में लेखक व पत्रकार अजय सिंह, लेखक शकील सिदिकी , नाटककार राजेश कुमार, ‘निष्कर्ष’ के सम्पादक डॉ गिरीशचन्द्र श्रीवास्तव, कथाकार नसीम साकेती, आलोचक चन्द्रेश्वर, कवि व उपन्यासकार वीरेन्द्र सारंग, कवि श्याम अंकुरम, कलाकार मंजु प्रसाद, कवि कौशल किशोर, प्रतुल जोशी आदि प्रमुख रहे।

वक्ताओं का कहना था कि श्री राय का यह स्त्री विरोधी रूप अचानक प्रकट होने वाली कोई घटना नहीं है। पिछले दिनों बतौर कुलपति श्री राय ने जिस दलित विरोधी सामंती सोच का परिचय दिया है, ‘नये ज्ञानोदय’ में महिला लेखिकाओं पर उनकी टिप्पणी उसी का विस्तार है। वक्ताओं ने ‘नया ज्ञानोदय’ के संपादक की भी आलोचना की। उनका कहना था कि समाज व जीवन के ज्वलंत व जरूरी सवालों व सरोकारों से साहित्य को दूर ले जाकर उसे मात्र मसालेदार बनाने की दिशा में रवीन्द्र कालिया काम कर रहे हैं। यह साहित्य की मानवीय भूमिका और उसकी गरिमा को नष्ट करना है। उसे मात्र बाजार व व्यवसाय के माल में बदल देना है।

जसम के संयोजक व कवि कौशल किशोर ने इस अवसर पर एक प्रस्ताव पेश किया जिसे संगोष्ठी में स्वीकार किया गया जिसके माध्यम से माँग की गई कि श्री विभूति नारायण राय का कृत्य आपराधिक है। इसलिए महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति के पद पर बने रहना समाज, साहित्य और संस्कृति के लिए अपमानजनक और घातक है। इन्हें तत्काल बर्खास्त किया जाय। प्रस्ताव में यह भी माँग की गई कि ‘नया ज्ञानोदय’ के सम्पादक रवीन्द्र कालिया को भी संपादक से हटाया जाय।
प्रस्ताव के माध्यम से देश भर के लेखकों, संस्कृतिकर्मियों से अपील की गई है कि मौजूदा स्थिति में वे महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के कार्यक्रमों में भाग न लें, उसका बहिष्कार करें तथा यहाँ की पत्र पत्रिकाओं से अपना सम्बन्ध विच्छेद कर लें। प्रस्ताव में यह भी अपील की गई कि जब तक रवीन्द्र कालिया को सम्पादक के पद से हटाया नहीं जाता तब तक लेखक व संस्कृतिकर्मी ‘नया ज्ञानोदय’ और इस पत्रिका को छापने वाले संस्थान भारतीय ज्ञानपीठ से अपना सम्बन्ध तोड़ लें। स्त्रियों के सम्मान और साहित्य की गरिमा की हिफाजत के लिए यह आवश्यक है।

गुरुवार, 5 अगस्त 2010

जन संस्कृति मंच
एफ - 3144, राजाजीपुरम, लखनऊ 226017मो: 09807519227,

विभूतिनारायण राय का माफी मांगना बौद्धिक चालबाजी है - एपवा व
जसम

लखनऊ, 05 अगस्त। महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति श्री विभूति नारायण राय द्वारा ‘नया ज्ञानोदय’ के अंक में स्त्री लेखिकाओं के सम्बन्ध में की गई अपनी टिप्पणी पर माफी मांगने को जन संस्कृति मंच (जसम) और अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) ने महज नाटक बताया है। गौरतलब है कि श्री राय ने यह माफी केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल के कहने पर मांगी है। उनकी टिप्पणी का विरोध होने के बाद ‘नया ज्ञानोदय’ को दिये अपने साक्षात्कार में व्यक्त विचारों के पक्ष में उन्होंने जो तर्क व दलीलें पेश की हैं, उसे देखते हुए यह कहीं से नहीं लगता कि उनके सोच और विचार में बदलाव आया है। ऐसे में उनका माफी मांगना मात्र अपनी कुलपति की कुर्सी बचाने की बौद्धिक चालबाजी है।

एपवा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ताहिरा हसन और जन संस्कृति मंच, लखनऊ के संयोजक कौशल किशोर ने आज संयुक्त बयान जारी कर केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल की इस बात के लिए आलोचना की कि उन्होंने श्री राय को दंडित करने की जगह उन्हें बचाने का काम किया है। बयान में कहा गया है कि श्री विभूति नारायण राय द्वारा ‘नया ज्ञानोदय’ के नये अंक में स्त्री लेखिकाओं के सम्बन्ध में की गई टिप्पणी उनके लिए प्रयुक्त अपमान जनक शब्द न सिर्फ महिलाओं की गरिमा को चोट पहुँचाने वाले अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है बल्कि यह महिलाओं के प्रति हिंसा की सोच से प्रेरित है। श्री राय का यह कृत्य आपराधिक है। इसलिए म गाँ अ हि वि जैसे महत्वपूर्ण विश्वविद्यालय के कुलपति के पद पर बने रहना हिन्दी समाज, साहित्य और संस्कृति के लिए अपमानजनक और घातक है। इन्हें तत्काल बर्खास्त किया जाय।

इस बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में जसम की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व कवयित्री शोभा सिंह, लेखक व पत्रकार अनिल सिन्हा, नाटककार राजेश कुमार, कथाकार सुभाष चन्द्र कुशवाहा, अलग दुनिया के कृष्णकान्त वत्स, कलाकार मंजु प्रसाद, लेखक श्याम अंकुरम, रवीन्द्र कुमार सिन्हा, कवि भगवान स्वरूप कटियार, एपवा की विमल किशोर, उमाशील, रंजना यादव, रेणु आदि प्रमुख हैं।

बयान में आगे कहा गया है कि श्री राय का यह स्त्री विरोधी रूप अचानक प्रकट होने वाली कोई घटना नहीं है। पिछले दिनों बतौर कुलपति श्री राय ने जिस दलित विरोधी सामंती सोच का परिचय दिया है, ‘नये ज्ञानोदय’ में महिला लेखिकाओं पर उनकी टिप्पणी उसी का विस्तार है। जसम ने ‘नया ज्ञानोदय’ के सम्पादक श्री रवीन्द्र कालिया की भी आलोचना की है। लेखक की अपनी स्वतंत्रता है तो सामग्री का चयन सम्पादक की स्वतंत्रता है। लेकिन इस प्रसंग में लगता है कि श्री राय के साथ श्री कालिया की सहमति है अन्यथा ऐसी सामग्री प्रकाशित ही नहीं हो पाती। श्री कालिया इस सम्बन्ध में अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। इसलिए जरूरी है कि ‘ज्ञानोदय’ जैसी पत्रिका की गरिमा को बचाने के लिए श्री रवीन्द्र कालिया केा सम्पादक पद से हटाया जाय।

मंगलवार, 3 अगस्त 2010

हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति वी एन राय को बर्खास्त किया जाय
‘ज्ञानोदय’ के सम्पादक रवीन्द्र कालिया को हटाया जाय


लखनऊ, 04 अगस्त। महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति श्री विभूति नारायण राय द्वारा ‘नया ज्ञानोदय’ के नये अंक में स्त्री लेखिकाओं के सम्बन्ध में की गई टिप्पणी और उनके लिए प्रयुक्त अपमान जनक शब्द न सिर्फ महिलाओं की गरिमा को चोट पहुँचाने वाले अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है बल्कि यह महिलाओं के प्रति हिंसा की सोच से प्रेरित है। श्री राय का यह कृत्य आपराधिक है। इसलिए म गाँ अ हि वि जैसे महत्वपूर्ण विश्वविद्यालय के कुलपति के पद पर बने रहना हिन्दी समाज, साहित्य और संस्कृति के लिए अपमानजनक और घातक है। इन्हें तत्काल बर्खास्त किया जाय।

जन संस्कृति मंच, लखनऊ (जसम) ने आज बयान जारी कर यह माँग की। बयान जारी करने वालों में जसम के संयोजक व कवि कौशल किशोर, जसम की राष्टीय उपाध्यक्ष शोभा सिंह ,लेखक व पत्रकार अनिल सिन्हा, नाटककार राजेश कुमार, कथाकार सुभाष चन्द्र कुशवाहा, कलाकार मंजु प्रसाद, लेखक श्याम अंकुरम, रवीन्द्र कुमार सिन्हा, कवि भगवान स्वरूप कटियार आदि प्रमुख हैं।

जन संस्कृति मंच का कहना है कि श्री राय का यह स्त्री विरोधी रूप अचानक प्रकट होने वाली कोई घटना नहीं है। पिछले दिनांे हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में उनके द्वारा दलित व आदिवासी छात्रों व शिक्षकों को उत्पीड़ित करने, आन्दोलनकारी छात्रों से बातचीत न कर उन्हें सबक सिखाने और आन्दोलन को कुचलने जैसे अलोकतांत्रिक तौर.तरीका अपनाया जाता रहा है। अनिल चमड़िया जैसे लेखक व पत्रकार को भी इसका शिकार होना पड़ा। यही नहीं श्री राय के ऊपर एक खास जाति विशेष के साथ पक्षपात का भी आरोप लगता रहा है। लेकिन खेद की बात है कि हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति श्री राय के इस अलोकतांत्रिक और ब्राहमणवादी व्यवहार के प्रति हिन्दी लेखकों का ‘प्रगतिशील’ व ‘जनवादी’ जमात आम तौर पर चुप्पी साधे रहा है और आज भी यह जमात मामले की लीपा पोती में लगा है।

जन संस्कृति मंच का कहना है कि पिछले दिनों बतौर कुलपति श्री राय ने जिस समाज और संस्कृति विरोधी सामंती सोच का परिचय दिया है, ‘नये ज्ञानोदय’ में महिला लेखिकाओं पर उनकी टिप्पणी उसी का विस्तार है। जसम ने ‘नया ज्ञानोदय’ के सम्पादक श्री रवीन्द्र कालिया की भी आलोचना की है। लेखक की अपनी स्वतंत्रता है तो सामग्री का चयन सम्पादक की स्वतंत्रता है। लेकिन इस प्रसंग में लगता है कि श्री राय के साथ श्री कालिया की सहमति है अन्यथा ऐसी सामग्री प्रकाशित ही नहीं हो पाती। श्री कालिया इस सम्बन्ध में अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। इसलिए जरूरी है कि ‘ज्ञानोदय’ जैसी पत्रिका की गरिमा को बचाने के लिए श्री रवीन्द्र कालिया केा सम्पादक पद से हटाया जाय।

कौशल किशोर
संयोजक
जन संस्कृति मंच, लखनऊ

सोमवार, 2 अगस्त 2010

जन संस्कृति मंच
प्रॆस‍ ‍विज्ञाप्ति

2 अगस्त, दिल्ली । जन संस्कृति मंच पिछले दिनों म। गा ही. वि. वि. के कुलपति श्री विभूति राय द्वारा एक साक्षात्कार के दौरान हिंदी स्त्री लेखन और लेखिकाओं के बारे में असम्मानजनक वक्तव्य की घोर निंदा करता है। यह साक्षात्कार उन्होंने नया ज्ञानोदय पत्रिका को दिया था. हमारी समझ से यह बयान न केवल हिंदी लेखिकाओं की गरिमा के खिलाफ है , बल्कि उसमें प्रयुक्त शब्द स्त्रीमात्र के लिए अपमानजनक हैं. इतना ही नहीं बल्कि बयान हिंदी के स्त्रीलेखन की एक सतही समझ को भी प्रदर्शित करता है.

आश्चार्य है की पूरे साक्षात्कार में यह बयान पैबंद की तरह अलग से दीखता है क्योंकि बाकी कही गई बातों से उसका कॊई सम्बन्ध् भी नहीं है. अच्छा हो कि श्री राय अपने बयान पर सफाई देने की जगह उसे वापस लें और लेखिकाओं से माफ़ी मांगें. नया ज्ञानोदय के सम्पादक रवींद्र कालिया अगर चाहते तो इस बयान को अपने सम्पादकीय अधिकार का प्रयोग कर छपने से रोक सकते थे. लेकिन उन्होंने तो इसे पत्रिका के प्रमोशन के लिए, चर्चा के लिए उपयोगी समझा. आज के बाजारवादी, उपभोक्तावादी दौर में साहित्य के हलकों में भी सनसनी की तलाश में कई सम्पादक , लेखक बेचैन हैं. इस सनसनी-खोजी साहित्यिक पत्रकारिता का मुख्य निशाना स्त्री लेखिकाएँ हैं और व्यापक स्तर पर पूरा स्त्री-अस्तित्व. रवींद्र कालिया को भी इसके लिए माफी माँगना चाहिए. जिन्हें स्त्री लेखन के व्यापक सरोकारों और स्त्री मुक्ति की चिंता है वे इस भाषा में बात नहीं किया करते. साठोत्तरी पीढ़ी के कुछ कहानीकारों ने जिस स्त्री-विरोधी, अराजक भाषा की ईजाद की, उस भाषा में न कोई मूल्यांकन संभव है और न विमर्श. जसम हिंदी की उन तमाम लेखिकाओं व प्रबुद्धनजन कॆ साथ है जिन्हॊनॆ इस बयान पर अपना रॊष‌ व्यक्त किया है.
प्रणय कृष्ण,
महासचिव, जसम