गुरुवार, 5 अगस्त 2010

जन संस्कृति मंच
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विभूतिनारायण राय का माफी मांगना बौद्धिक चालबाजी है - एपवा व
जसम

लखनऊ, 05 अगस्त। महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति श्री विभूति नारायण राय द्वारा ‘नया ज्ञानोदय’ के अंक में स्त्री लेखिकाओं के सम्बन्ध में की गई अपनी टिप्पणी पर माफी मांगने को जन संस्कृति मंच (जसम) और अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (ऐपवा) ने महज नाटक बताया है। गौरतलब है कि श्री राय ने यह माफी केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल के कहने पर मांगी है। उनकी टिप्पणी का विरोध होने के बाद ‘नया ज्ञानोदय’ को दिये अपने साक्षात्कार में व्यक्त विचारों के पक्ष में उन्होंने जो तर्क व दलीलें पेश की हैं, उसे देखते हुए यह कहीं से नहीं लगता कि उनके सोच और विचार में बदलाव आया है। ऐसे में उनका माफी मांगना मात्र अपनी कुलपति की कुर्सी बचाने की बौद्धिक चालबाजी है।

एपवा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ताहिरा हसन और जन संस्कृति मंच, लखनऊ के संयोजक कौशल किशोर ने आज संयुक्त बयान जारी कर केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल की इस बात के लिए आलोचना की कि उन्होंने श्री राय को दंडित करने की जगह उन्हें बचाने का काम किया है। बयान में कहा गया है कि श्री विभूति नारायण राय द्वारा ‘नया ज्ञानोदय’ के नये अंक में स्त्री लेखिकाओं के सम्बन्ध में की गई टिप्पणी उनके लिए प्रयुक्त अपमान जनक शब्द न सिर्फ महिलाओं की गरिमा को चोट पहुँचाने वाले अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है बल्कि यह महिलाओं के प्रति हिंसा की सोच से प्रेरित है। श्री राय का यह कृत्य आपराधिक है। इसलिए म गाँ अ हि वि जैसे महत्वपूर्ण विश्वविद्यालय के कुलपति के पद पर बने रहना हिन्दी समाज, साहित्य और संस्कृति के लिए अपमानजनक और घातक है। इन्हें तत्काल बर्खास्त किया जाय।

इस बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में जसम की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व कवयित्री शोभा सिंह, लेखक व पत्रकार अनिल सिन्हा, नाटककार राजेश कुमार, कथाकार सुभाष चन्द्र कुशवाहा, अलग दुनिया के कृष्णकान्त वत्स, कलाकार मंजु प्रसाद, लेखक श्याम अंकुरम, रवीन्द्र कुमार सिन्हा, कवि भगवान स्वरूप कटियार, एपवा की विमल किशोर, उमाशील, रंजना यादव, रेणु आदि प्रमुख हैं।

बयान में आगे कहा गया है कि श्री राय का यह स्त्री विरोधी रूप अचानक प्रकट होने वाली कोई घटना नहीं है। पिछले दिनों बतौर कुलपति श्री राय ने जिस दलित विरोधी सामंती सोच का परिचय दिया है, ‘नये ज्ञानोदय’ में महिला लेखिकाओं पर उनकी टिप्पणी उसी का विस्तार है। जसम ने ‘नया ज्ञानोदय’ के सम्पादक श्री रवीन्द्र कालिया की भी आलोचना की है। लेखक की अपनी स्वतंत्रता है तो सामग्री का चयन सम्पादक की स्वतंत्रता है। लेकिन इस प्रसंग में लगता है कि श्री राय के साथ श्री कालिया की सहमति है अन्यथा ऐसी सामग्री प्रकाशित ही नहीं हो पाती। श्री कालिया इस सम्बन्ध में अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। इसलिए जरूरी है कि ‘ज्ञानोदय’ जैसी पत्रिका की गरिमा को बचाने के लिए श्री रवीन्द्र कालिया केा सम्पादक पद से हटाया जाय।

2 टिप्‍पणियां:

''अपनी माटी'' वेबपत्रिका सम्पादन मंडल ने कहा…

bayaan lagaataar jaari rahe to lagataa hai ki dusaraa paksh zindaa hai

सुभाष चन्द्र कुशवाहा ने कहा…

राय के अलावा कालिया ज्यादा दोषी हैं । कालिया शुरु से सनसनीखेज सामग्री छापते रहे हैं । एक बार उनके गुरू अश्क जी,ऐसे ही आचरण पर जूता लेकर मारने गए थे ।