बुधवार, 11 अगस्त 2010

लखनऊ के लेखको व संस्कृतिकर्मियों की अपील: विभूति नारायण राय और रविन्द्र कालिया का बहिष्कार हो

लखनऊ के लेखकों, संस्कृतिकर्मियों और महिला व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा के कुलपति विभूति नारायण राय द्वारा ‘नया ज्ञानोदय’ के अंक में हिन्दी लेखिकाओं के सम्बन्ध में की गई टिप्पणी तथा उनके लिए प्रयुक्त ‘छिनाल’ जैसे अपमान जनक शब्द पर अपना गहरा विरोध जताया और कहा कि यह महिलाओं के प्रति हिंसा की सोच से प्रेरित है। विभूति नारायण और ‘नया ज्ञनोदय’ के सम्पादक रवीन्द्र कालिया साहित्य में जिस ‘सबसे बेबाक’ की बात कर रहे हैं, वह वास्तव में यौन हिंसा और दबंगई है। महिला सम्मान और लोकतांत्रिक मूल्यों की हिफाजत के लिए जरूरी है कि इन प्रवृŸिायों का विरोध हो और इनका सामाजिक व सांस्कृतिक बहिष्कार किया जाय।

यह विचार ‘साहित्य में यौन हिंसा और दबंगई के खिलाफ’ आयोजित संगोष्ठी में उभर कर आया। कार्यक्रम आज यहा राज्य सूचना निदेशालय के सभागार में जन संस्कृति मंच (जसम) अलग दुनिया और प्रगतिशील महिला एसोसिएशन (येपवा) ने ‘नया ज्ञानोदय’ में महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति विभूति नारायण राय द्वारा हिन्दी लेखिकाओं के सम्बन्ध में की गई अपमानजनक टिप्पणी के परिप्रेक्ष्य में संयुक्त रूप से आयोजित किया था। संगोष्ठी की अध्यक्षता एपवा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ताहिरा हसन ने की, वहीं विषय प्रवर्तन किया जसम की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व कवयित्री शोभा सिंह ने। कार्यक्रम का संचालन किया अलग दुनिया के कृष्णकान्त वत्स ने।
इस मौके पर पर विचार रखने वालों में लेखक व पत्रकार अजय सिंह, लेखक शकील सिदिकी , नाटककार राजेश कुमार, ‘निष्कर्ष’ के सम्पादक डॉ गिरीशचन्द्र श्रीवास्तव, कथाकार नसीम साकेती, आलोचक चन्द्रेश्वर, कवि व उपन्यासकार वीरेन्द्र सारंग, कवि श्याम अंकुरम, कलाकार मंजु प्रसाद, कवि कौशल किशोर, प्रतुल जोशी आदि प्रमुख रहे।

वक्ताओं का कहना था कि श्री राय का यह स्त्री विरोधी रूप अचानक प्रकट होने वाली कोई घटना नहीं है। पिछले दिनों बतौर कुलपति श्री राय ने जिस दलित विरोधी सामंती सोच का परिचय दिया है, ‘नये ज्ञानोदय’ में महिला लेखिकाओं पर उनकी टिप्पणी उसी का विस्तार है। वक्ताओं ने ‘नया ज्ञानोदय’ के संपादक की भी आलोचना की। उनका कहना था कि समाज व जीवन के ज्वलंत व जरूरी सवालों व सरोकारों से साहित्य को दूर ले जाकर उसे मात्र मसालेदार बनाने की दिशा में रवीन्द्र कालिया काम कर रहे हैं। यह साहित्य की मानवीय भूमिका और उसकी गरिमा को नष्ट करना है। उसे मात्र बाजार व व्यवसाय के माल में बदल देना है।

जसम के संयोजक व कवि कौशल किशोर ने इस अवसर पर एक प्रस्ताव पेश किया जिसे संगोष्ठी में स्वीकार किया गया जिसके माध्यम से माँग की गई कि श्री विभूति नारायण राय का कृत्य आपराधिक है। इसलिए महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के कुलपति के पद पर बने रहना समाज, साहित्य और संस्कृति के लिए अपमानजनक और घातक है। इन्हें तत्काल बर्खास्त किया जाय। प्रस्ताव में यह भी माँग की गई कि ‘नया ज्ञानोदय’ के सम्पादक रवीन्द्र कालिया को भी संपादक से हटाया जाय।
प्रस्ताव के माध्यम से देश भर के लेखकों, संस्कृतिकर्मियों से अपील की गई है कि मौजूदा स्थिति में वे महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के कार्यक्रमों में भाग न लें, उसका बहिष्कार करें तथा यहाँ की पत्र पत्रिकाओं से अपना सम्बन्ध विच्छेद कर लें। प्रस्ताव में यह भी अपील की गई कि जब तक रवीन्द्र कालिया को सम्पादक के पद से हटाया नहीं जाता तब तक लेखक व संस्कृतिकर्मी ‘नया ज्ञानोदय’ और इस पत्रिका को छापने वाले संस्थान भारतीय ज्ञानपीठ से अपना सम्बन्ध तोड़ लें। स्त्रियों के सम्मान और साहित्य की गरिमा की हिफाजत के लिए यह आवश्यक है।

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