शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

ये धुआं धुआं अँधेरा

मोहन थपलियाल की याद में हरिओम का कहानी पाठ

कौशल किशोर

‘ये धुआँ धुआँ अंधेरा’ कहानी है त्रासदी की। कहानी है सपने के बुनने और टूटने की। कहानी है हमारे लोकतंत्र व धर्म निरपेक्षता की सच्चाई की। युवा कवि-कथाकार हरिओम की यह कहानी ‘ये धुआँ धुआँ अंधेरा’ की विषय वस्तु साम्प्रदायिक फासीवाद के उभार के द्वारा हमारे समाज के वातावरण को विषाक्त बना दिये जाने पर केन्द्रित है। यह उन मुस्लिम और हिन्दू युवाओं - नसीम, अनीस, जयराज ...की कहानी है जो विभिन्न पृष्ठभूमि से आते हैं, उनके पास अपने सपने हैं लेकिन देश, दुनिया, समाज से रु ब रु होने पर पुराने सपनों की जगह वे नये सपने देखने लगते हैं। लूट, शोषण, दमन, अत्याचार से भरी इस दुनिया को बदलने का संघर्ष उनके अन्दर पैदा होता है। वे साथी बन जाते हैं। अपनी मंडली बन जाती है। वहाँ सवाल, संवेदना, बहसें और विचार की दुनिया है। यहां समाज बदलने का सपना है। जिन्दगी की मुश्किल लड़ाई को लड़ने का जज्बा है। नसीम और जयराज के बीच प्रेम के अंकुर जरूर फूटते हैं लेकिन उसमें साथीपन है। यह साथीपन आधुनिक, प्रगतिशील, स्वतंत्र व समता के विचारों पर आधारित है।

युवाओं के सपनों पर चोटें पड़ती है जब देश के माहौल में धर्म और साम्प्रदायिकता का उभार आता है। मुद्दे बदलते हैं। हिंसा, नफरत और अविश्वास का माहौल पैदा किया जाता है। एक तरफ कान के परदे फाड़ देने वाला शोर है ताकि वेदना की चीखें सुनाई न दे तो दूसरी तरफ खामोशी है इसलिए कि गुनाह बेपरदा न हो जाय। यह दौर है 1992 का जब भगवान के नाम पर बस्तियां जला दी जाती हैं, बड़े पैमाने पर दंगे होते हैं, धर्म निरपेक्षता और लोकतंत्र की होली जलाई जाती है। उन जलाई गई बस्तियों में एक बस्ती नसीम की भी है। वह नसीम जो सुबह की हवा की तरह ताजा थी, अपने विचारों में आधुनिक, स्वतंत्र और संघर्ष के जज्बे से भरी - उसके लिए हिला देने वाली घटना है। उसके अन्दर के प्रतिरोध की ताकत चुकने लगती है। वह अपनी लुटी - पिट्टी बस्ती में वापस लौट जाती है। वह सवाल छोड़ जाती है। यह कहानी पाठक को त्रासदी के गहरे समन्दर में ले जाती है जहाँ उसे लोकतंत्र के सही मायने को समझना है और संघर्ष के नये ताने-बाने बुनने हैं।

हरिओम ने अपनी इस कहानी का प्रभावशाली पाठ किया। मौका था कथाकार, पत्रकार व अनुवादक मोहन थपलियाल की याद में जन संस्कृति मंच (जसम ) द्वारा आयोजित कार्यक्रम का। यह 31 जनवरी को महात्मा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के लखनऊ केन्द्र में आयोजित हुआ। कहानी पर अच्छी चर्चा हुइ जिसमें गिरीशचन्द्र श्रीवास्तव,, सुभाष चन्द्र कुशवाहा, राजेश कुमार, भगवान स्वरूप कटियार, नसीम साकेती, चन्द्रेश्वर, वंदना मिश्र, सुशीला पुरी, मालविका, अशोक मिश्र, रवीन्द्र कुमार सिन्हा, ताहिरा हसन आदि ने भाग लिया।

कुछ वक्ताओं का कहना था कि नसीम का पात्र कृत्रिम व बनावटी लगता है। बेहतर होता अगर उसे प्रेमिका और सिगरेट पीते हुए न पेश किया जाता। इस छवि से वह रोमांटिक ज्यादा लगती है, आन्दोलनकारी कम। वहीं कुछ वक्ताओं का कहना था कि नसीम का सिगरेट पीना कोई नई बात नहीं है और यह पात्र का निजी मामला है। वह अपने विचार व व्यवहार से छात्राओं की नेता भी बनती है। प्रेम और क्रान्ति एक दूसरे के विरोधी नहीं हैं। नसीम और जयराज प्रेम भी करते हैं और बुनकरों की बस्ती में भी जाते हैं। वक्ता इस बात पर सहमत थे कि बाबरी मस्जिद ध्वंस की पृष्ठभूमि पर लिखी यह कहानी हमें गहरे रूप से संवेदित करती है और फासीवाद के भयावह रूप को सामने लाती है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए लेखक व पत्रकार अजय सिंह ने कहा कि यह आधुनिक संवेदना की कहानी है। कहानी की पात्र नसीम स्त्री समानता के लिए संघर्ष करती है। पारम्परिक वामपंथी मानसिकता के लिए नसीम का व्यवहार अस्वाभाविक लग सकता है लेकिन वह स्त्री पुरुष समानता पर आधारित आधुनिक विचारों वाली स्त्री है और इस समानता के लिए वह संघर्ष करती है। उत्तर आधुनिकता से अलग उसमें आधुनिक लोकतांत्रिक अकांक्षा की अभिव्यक्ति होती है। कहानी अपने शिल्प में काफी सशक्त और प्रभावकारी है।

जसम के इस कार्यक्रम की शुरूआत मोहन थपलियाल को याद करते हुए हुई। मोहन थपलियाल के साथ के अपने दिनों तथा उनके रचना कर्म को याद करते हुए लेखक अनिल सिन्हा ने कहा कि मोहन में जहाँ गहरी वैचारिक प्रतिबद्धता थी, वहीं उन्होंने सारी जिन्दगी समझौताविहीन संघर्ष चलाया और उनका रचना कर्म इसी की उपज था। उनके जीवन का संघर्ष हमें बहुत कुछ मुक्तिबोध के संघर्ष की याद दिलाता है। मोहन गंभीर रूप से बीमार हुए और असमय हमारे बीच से चले गये। उनकी चिन्ता थी एक बेहतर समाज को बनाने की। वे फासीवाद विरोधी रचनाकार थे। इसी से उनका रचना संसार निर्मित होता है। फासीवाद विरोधी जर्मन और विदेशी साहित्य खासतौर से ब्रतोल्त ब्रेख्त के साहित्य को हिन्दी के पाठकों तक पहुँचाने का उन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किया।

इस मौके पर मोहन थपलियाल की पत्नी कमला, बेटी नीति व बेटा उमंग के अलावा बड़ी संख्या में लखनऊ के लेखक व संस्कृतिकर्मी भी उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन कवि व जसम, लखनऊ के संयोजक कौशल किशोर ने किया।

1 टिप्पणी:

सुशीला पुरी ने कहा…

आपकी इस यादगार गोष्ठी के लिए हार्दिक बधाई .