बुधवार, 25 मई 2011

कामरेड चन्द्रबली सिंह को जन संस्कृति मंच की श्रद्धांजलि

२५ मई, दिल्ली.
हिन्दी के सुप्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक , संगठनकर्ता और विश्व कविता के श्रेष्टतम अनुवादकों में शुमार कामरेड चन्द्रबली सिंह का विगत २३ मई को ८७ वर्ष की आयु में बनारस में निधन हो गया. चन्द्रबली जी का जाना एक ऐसे कर्मठ वाम बुद्धिजीवी का जाना है जो मार्क्सवादी सांस्कृतिक आन्दोलन के हर हिस्से में बराबर समादृत और प्रेरणा का स्रोत रहा.
चन्द्रबली जी रामविलास शर्मा , त्रिलोचन शास्त्री की पीढी से लेकर प्रगतिशील संस्कृतिकर्मियों की युवतम पीढी के साथ चलने की कुव्वत रखते थे. वे जनवादी लेखक संघ के संस्थापक महासचिव और बाद में अध्यक्ष रहे. उससे पहले तक वे प्रगतिशील लेखक संघ के महत्वपुर्ण स्तम्भ थे. जन संस्कृति मंच के साथ उनके आत्मीय सम्बन्ध ताजिन्दगी रहे. बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद राष्ट्रीय एकता अभियान के तहत सांस्कृतिक संगठनों के साझा अभियान की कमान बनारस में उन्ही के हाथ थी और इस दौर में उनके और हमारे संगठन के बीच जो आत्मीय रिश्ता कायम हुआ , वह सदैव ही चलता रहा. उनके साक्षात्कार भी समकालीन जनमत में प्रकाशित हुए. चन्द्रबली जी वाम सांस्कृतिक आन्दोलन के समन्वय के प्रखर समर्थक रहे.
चन्द्रबली जी ने मार्क्सवादी सांस्कृतिक आन्दोलन के भीतर की बहसों के उन्नत रूप और स्तर के लिए हरदम ही संघर्ष किया. 'नयी चेतना' १९५१ में उनका लेखा छपा था, 'साहित्य में संयुक्त मोर्चा'. ( बाद में वह 'आलोचना का जनपक्ष' पुस्तक में संकलित भी हुआ). चन्द्रबली जी ने इस लेख में लिखा, "सबसे अधिक निर्लिप्त और उद्देश्यपूर्ण आलोचना- आत्मालोचना कम्यूनिस्ट लेखकों और आलोचकों की और से आनी चाहिए. उन्हें अपने भटकावों को स्वीकार करने में किसी प्रकार की झेंप या भीरुता नहीं दिखलानी चाहिए, क्योंकि जागरूक क्रांतिकारी की यह सबसे बड़ी पहचान है कि वह आम जनता को अपने साथ लेकर चलता है और वह यह जानता है कि दूसरों की आलोचना के साथ साथ जबतक वह अपनी भी आलोचना नहीं करता तब तक वह न सिर्फ जनता को ही साथ न ले सकेगा, वरन स्वयं भी वह अपने लिए सही मार्ग का निर्धारण नहीं करा पाएगा दूसरों की आलोचना में भी चापलूसी करने की आवश्यकता नहीं , क्योंकि चापलूसी उन्हें कुछ समय तक धोखा दे सकती है, किन्तु उन्हें सुधार नहीं सकती. मैत्रीपूर्ण आलोचना का यह अर्थ नहीं कि हम दूसरों की गलतियों को जानते हुए भी छिपा करा रखें. मार्क्सवादी आलोचना-आत्मालोचना के स्तर और रूप की यही विशेषता होनी चाहिए कि हम उसके सहारे आगे बढ़ सकें. " आज से ६० साल पहले लिखे गए इस लेख में आपस में और मित्रों के साथ पालेमिक्स के रूप, स्तर और उद्देश्य की जो प्रस्तावना है वह आज और भी ज़्यादा प्रासंगिक है. उन्होंने अपने परम मित्र और साथी रामविलास शर्मा के साथ अपने लेखों में जो बहसें की हैं वे स्वयं उनके बनाए निकष का प्रमाण हैं.
उनकी आलोचना की दोनों ही पुस्तकें 'आलोचना का जनपक्ष' तथा 'लोकदृष्टि और हिंदी साहित्य' दस्तावेजी महत्त्व की हैं. इनमें हिंदी साहित्य और संस्कृति के प्रगतिशील अध्याय के तमाम उतार- चढ़ाव, बहसों और उपलब्धियों की झांकी ही नहीं मिलती , बल्कि आज के संस्कृतिकर्मी और अध्येता के लिए इनमें तमाम अंतर्दृष्टिपूर्ण सूत्र बिखरे पड़े हैं.
पाब्लो नेरूदा ,नाजिम हिकमत,वाल्ट व्हिटमैन और एमिली डिकिन्सन की कविताओं के उनके अनुवाद उच्च कोटि की काव्यात्मक संवेदना, चयन दृष्टि और सांस्कृतिक अनुवाद के प्रमाण हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि ब्रेख्त, मायकोवस्की और तमाम अन्य कवियों के उनके अप्रकाशित अनुवाद और दूसरी सामग्रियां जल्द ही प्रकाशित होंगी.
जन संस्कृति मंच वाम सांस्कृतिक आन्दोलन की अनूठी शख्सियत साथी चन्द्रबली सिंह को लाल सलाम पेश करता है और शोकसंतप्त परिजन, मित्रों, साथियों के प्रति हार्दिक संवेदना प्रकट करता है.
प्रणय कृष्ण , महासचिव, जन संस्कृति मंच द्वारा जारी .

चन्द्रबली सिंह सच्चे कम्युनिस्ट आदर्शों
और सिद्धान्तों पर चलने वाले लेखक व आलोचक थे।

लखनऊ, 23 मई। हिन्दी के प्रसिद्ध समालोचक चन्द्रबली सिंह नहीं रहे। आज सुबह साढ़े आठ बजे बनारस में उनका निधन हो गया। वे करीब 86 साल के थे। यह हमारे लिए अत्यन्त दुखद है। जन संस्कृति मंच उनके निधन पर अपना गहरा शोक प्रकट करता है। अपनी शोक संवेदना प्रकट करते हुए जसम लखनऊ के संयोजक कौशल किशोर ने कहा कि चन्द्रबली सिंह सच्चे कम्युनिस्ट आदर्शों और सिद्धान्तों पर चलने वाले लेखक व आलोचक थे। विचारधारा और सिद्धान्त से इतर उनके अन्दर कोई महत्वाकांक्षा नहीं थी, सारी जिन्दगी उन्होंने इसी पर अमल किया और कम्युनिस्ट कार्यकर्ता का जीवन जिया। उनकी मशहूर आलोचनात्मक कृति ‘आलोचना का जनपक्ष’ उनकी वैचारिक प्रखरता का उदाहरण है। उन्होंने नाजिम हिकमत, पाब्लो नेरुदा आदि की रचनाओं का अनुवाद भी किया।

आज चन्द्रबली सिंह के निधन पर चन्द्रेश्वर, राजेश कुमार, सुभाष चन्द्र कुशवाहा, भगवान स्वरूप कटियार, शोभा सिंह, रवीन्द्र कुमार सिन्हा, बी एन गौड़, श्याम अंकुरम आदि रचनाकारों ने भी शोक प्रकट किया। इनका कहना था कि पार्टी और विचार के प्रति कट्टरता के स्तर की दृढ़ता के बावजूद चन्द्रबली जी के व्यवहार में कोई संकीर्णता नहीं थी और हमेशा साझे सांस्कृतिक आंदोलन पर जोर दिया तथा बनारस में तो उन्होंने जलेस, प्रलेस और जसम के संयुक्त सांस्कृतिक आंदोलन का नेतृत्व किया। चन्द्रबली जी हमारे मूल्यवान साथी थे और आज ऐसे साथी दुर्लभ होते जा रहे हैं और ऐसे दौर में जब प्रतिक्रियावादी ताकतें वामपंथी आंदोलन पर हमलावर बनी है, चन्द्रबली जी हमारे लिए प्रेरक रहे। उनका जाना वामपंथी सांस्कृतिक आंदोलन के लिए बड़ी क्षति है।

कौशल किशोर
संयोजक
जन संस्कृति मंच, लखनऊ
एफ-3144, राजाजीपुरम, लखनऊ - 226017
मो - 08400208031, 09807519227

कोई टिप्पणी नहीं: