गुरुवार, 10 मार्च 2011

अनिल सिन्हा की याद ने सबको रूला दिया







शब्दों की दुनिया के लोग - लेखक, पत्रकार, संस्कृतिकर्मी, बुद्धिजीवी ...... सब थे। ऐसा बहुत कम मौका आया होगा जब उन्हें शब्दों के संकट का सामना करना पड़ा हो। पर हालत ऐसी ही थी। किसी को भी अपने विचारों-भावों को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं मिल रहे थे। एक-दो वाक्य तक बोल पाना मुश्किल हो रहा था। हिन्दी कवि वीरेन डंगवाल की हालत तो और भी बुरी थी। सब कुछ जैसे गले में ही अटक गया है। यह कौन सी कविता है ? कुछ समझ में नहीं आ रहा था। पर वह कविता ही थी। उसके पास शब्द नहीं थे पर वह वेगवान नदीे की तरह बह रही थी। इतना आवेग, सीधे दिल में उतर रही थी। आँसूओं के रूप में बहती इस कविता को सब महसूस कर रहे थे। यह प्रकृति का कमाल ही है कि जहाँ शब्द साथ छोड़ देते हैं, शब्दों का जबान से तालमेल नहीं बैठ पाता, ऐसे में हमारी इन्द्रियाँ विचारों-भावों को अभिव्यक्त करने का माध्यम बन जाती हैं। 6 मार्च को अनिल सिन्हा की स्मृति सभा में ऐसा ही दृश्य था। बड़ी संख्या में साहित्यकार, पत्रकार, रंगकर्मी, कलाकार, बुद्धिजीवी, राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ता, अनिल सिन्हा के परिजन, मोहल्ले के साथी, पास-पड़ोस के स्त्री-पुरुष सब इक्ट्ठा थे। अचानक अनिल सिन्हा के चले जाने का दुख तो था ही, पर सब उनके साथ की स्मृतियों का सझाा करना चाहते थे। किसी के साथ दस साल का, तो किसी से तीस व चालीस साल का और कुछ का तो जन्म से ही उनका साथ था और सभी उनके साथ बीताये क्षणों की स्मृतियों, अपने अनुभवों को आपस में बाँटना चाहते थे।

इस अवसर पर कवि भगवान स्वरूप कटियार और विमला किशोर ने अपनी भावनाओं को कविताओं के माध्यम से व्यक्त किया। वे कविताएँ यहाँ दी जा रही हैं:

एक बेचैन आवाज


भगवान स्वरूप कटियार

जहां मेरा इंतजार हो रहा है
वहां मैं पहुंच नहीं पा रहा हूं
दोस्तों की फैली हुई बाहें
और बढे हुए हांथ मेरा इंतजार कर रहे हैं .

पर मेरी उम्र का पल पल
रेत की तरह गिर रहा है
रैहान मुझे बुला रहा है
ऋतु- अनुराग,निधि- अर‘ाद,
‘ाा‘वत- दिव्या और मेरी प्रिय आ‘ाा
और मेरे दोस्तों की इतनी बडी दुनिया
मैं किस किस के नाम लूं
सब मेरा इंतजार कर रहे हैं
पर मैं पहुंच नहीं पा रहा हू
मेरी सांसें जबाब दे रही हैं .

पर दोस्तो याद रखना
मौत ,वक़्त की अदालत का आखिरी फैसला नहीं है
जिन्दगी मौत से कभी नहीं हरती
मेरे दोस्त ही तो मेरी ताकत रहे हैं
इसलिए मैं हमे‘ाा कहता रहा हूं
कि दोस्त से बडा कोई रि‘ता नहीं होता
और ना ही दोस्ती से बडा कोई धर्म
मैं तो यहां तक् कहता हू
कि दोस्ती से बडी कोई विचारधारा भी नहीं होती
जैसे चूल्हे में जलती आग से बडी
कोई रो‘ानी नहीं होती .

इसलिए मेरी गुजारि‘ा है
कि उलझे हुए सवालों से टकराते हुए
एक बेहतर इंसानी दुनिया बनाने के लिए
मेरी यादों के साथ संघर्“ा का कारवां चलता रहे


मंजिल के आखिरी पडाव तक.

याद

विमला किशोर

एक पक्षी उड़ गया
मानो, हमारा प्यारा साथी छूट गया
वह पच्चीस तारीख थी
साल दो हजार ग्यारह का दूसरा महीना था
एक बिजली सी कौंध गई
आँखों में
चारो तरफ घिर आया अंधेरा
मन भी बहुत आहत हुआ
दूर, बहुत दूर चला गया वह बादलों के पार
झाँक रहा वह वहीं से
हम सबके दिलों मे
उजियारा फैलाता
आज भी खड़ा है
हम सबकी यादों में
जिन्दगी के मायने बताता
अटल
दैदिप्यमान
प्रकाश स्तम्भ की तरह
हम सबको राह दिखाता

1 टिप्पणी:

सुशीला पुरी ने कहा…

विनम्र श्रद्धांजलि !